पैग - पे - पैग हम तो चढाते रहे।
जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।
जैसे जनन्त में हूँ ऐसा हुआ असर,
आनंद,कुछ समय गुदगुदाते रहे।
पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।
दोनों मिलकर नशामे भीगाते रहे।
बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।
कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।
••••••रमेश कुमार सिंह ♌ ••• ••••••०३---०३---२०१५•••••
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें