मन कि चन्चलता,
देखने को कहता,
तुम्हें ढुढ रही हूँ,
जानते हों क्यों,
आज प्रेम दिवस है।
हृदय व्याकुलता,
आने को कहता,
राह देख रही हूँ,
जानते हों क्यों?
आज प्रेम दिवस हैं।
फुलो कि बगिया,
से फुल गुलाबिया,
तोड़ कर लाया हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
स्नेह भरे फुलो को,
तुम्हीं को देने को,
लेकर चला आया हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
इन लिए पुष्पों को,
अपनी खुली पलको को,
समेट नहीं पाती हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
मुँदी पलकों,
बिखरी अलको,
होठों की जुंबिस,
चुम रही हूँ,
जानते हो क्यों ?
आज प्रेम दिवस है।
तुम कहाँ हो ?
अनजानी राहों,
अकेली बैठीं हूँ,
जानते हो क्यों ?
आज प्रेम दिवस है।
•••••••••••••••••••••••••••••••।
-------------
रमेश कुमार सिंह --।
---------------१४-०२-२०१५----।
•••••••••••••••••••••••••••••••।