यादगार पल

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सोमवार, 30 मार्च 2015

जाम-पे-जाम (मुक्तक)


पैग - पे - पैग हम तो चढाते रहे।
जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।
जैसे जनन्त में हूँ ऐसा हुआ असर,
आनंद,कुछ समय गुदगुदाते रहे।


पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।
दोनों मिलकर नशामे भीगाते रहे।
बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।
कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।


••••••रमेश कुमार सिंह ♌ ••• ••••••०३---०३---२०१५•••••

गुरुवार, 26 मार्च 2015

आज भी याद है ---(कविता)

आज भी याद है,
उसकी हँसीं,
मुस्कुराहट
अधरों से निकले,
वो लब्ज जब,
हृदयंगम,
होते हैं।
तो मैं खो जाता हूँ
उसकी यादों में,
टटोलने लगता हूँ,
बिताये हुए।
वो सारे पल-
वो स्पर्श,
कभी कभी ,
नाराजगी को दिखाना ,
मुझसे दूर जाकर,
बैठ जाना,
फिर थोड़ी देर बाद,
वापस आना,
अपनी गलती को,
सहर्ष स्वीकार करना।
फिर मुस्कुराते हुए,
शरमाना।
होने लगती है,
सब बातें।
अन्त में हाथ लगती है,
उसके हमारे बीच का
कार्यानुभव,
जिसमें यादों के रास्ते,
करते हैं विचरण!!
----रमेश कुमार सिंह ♌
----०८-०३-२०१५

सोमवार, 23 मार्च 2015

यादें (कविता)


हे मन !
क्यों उदास है?
क्या सोच रहा है?
क्यों याद कर रहा है ?उसको
उसका अभी -भी इन्तजार है ,
उसने क्या दिया था तुम्हें,
खुशहाल भरे ओ पल,
आनन्द भरी वो बातें,
इजहार के वो दिन,
क्या यही याद कर रहा है तुम,
वो तो तुम्हारे पास सब
छोड़ कर गई है।
उसका रूप बदलकर गई है।
नाम है जिसका-यादें।
उन यादों के झरोखों में,
झाककर देखोगे जब,
दिखाई देगा वो सब।
साथ-साथ रहने की-
चाहे वो बाग हो।
चाहे वो सफर हो।
चाहे वो मन्दिर हो।
चाहे वो महफ़िल हो।
चाहे वो प्यार हो।
चाहे वो इजहार हो।
सब हैं यादों में कैद।
वो लेकर क्या गई?
सिर्फ व सिर्फ एक नाम-
"बेवफा"!!!!
---------रमेश कुमार सिंह ♌
---------२९-०१-२०१५

रविवार, 22 मार्च 2015

तुम कहाँ हो???


मन कि चन्चलता,
देखने को कहता,
तुम्हें ढुढ रही हूँ,
         जानते हों क्यों,
         आज प्रेम दिवस है।


हृदय व्याकुलता,
आने को कहता,
राह देख रही हूँ,
         जानते हों क्यों?
         आज प्रेम दिवस हैं।


फुलो कि बगिया,
से फुल गुलाबिया,
तोड़ कर लाया हूँ,
          जानते हो क्यों?
          आज प्रेम दिवस है।


स्नेह भरे फुलो को,
तुम्हीं को देने को,
लेकर चला आया हूँ,
         जानते हो क्यों?
         आज प्रेम दिवस है।


इन लिए पुष्पों को,
अपनी खुली पलको को,
समेट नहीं पाती हूँ,
         जानते हो क्यों?
         आज प्रेम दिवस है।


मुँदी पलकों,
बिखरी अलको,
होठों की जुंबिस,
चुम रही हूँ,
          जानते हो क्यों ?
          आज प्रेम दिवस है।


तुम कहाँ हो ?
अनजानी राहों,
अकेली बैठीं हूँ,
         जानते हो क्यों ?
         आज प्रेम दिवस है।
•••••••••••••••••••••••••••••••।
------------- रमेश कुमार सिंह --।
---------------१४-०२-२०१५----।
•••••••••••••••••••••••••••••••।

तुम्हारी याद ---


यादें तुम्हारी मेरे पास बहुत है ,
किस पल को याद करूँ मैं।
सभी पलो में हलचल मची है,
किस-किस पर मन दौड़ाऊँ मैं।


मन चारों दिशाओं मे जाते हैं,
किधर-किधर उसे मोड़ दू मैं ।
सब कुछ बातें समझ नहीं पाते,
कैसे बिताये लम्हे याद करूँ मैं ।


जब -जब याद तुम्हें करते हैं ,
उस वक्त सोचने लगता हूँ मैं।
खुराफातें सब मन में आ जाते हैं,
कैसे इन सबको हटाऊँ मैं ।


हर क्षण आती बहुत सी बातें,
कैसे हर क्षण को विताऊँ मैं।
हृदय में मेरे हर पल चुभतें,
जब गुजरें लम्हे याद करता हूँ मैं।


हृदय तल पर वो पल उमड़ते हैं,
कैसे तुम्हारे दिल को बतलाऊँ मैं।
बातें एक-एक करके बित चुके हैं ,
कैसे तुम्हें आकर समझाऊँ मैं ।


कल्पित शब्दों से वर्णन कर-करके,
कैसे परिस्थितियों को भुलाऊँ मैं।
समाप्ति के कगार पर लम्हे आपके,
कैसे तुम्हारे दिल के अन्दर आऊँ मैं।
--------रमेश कुमार सिंह ♌

बुधवार, 11 मार्च 2015

वो यादें•••• (संस्मरण)

ईशीका—— हमारे और तुम्हारे बीच जितनी भी क्रियाएँ हुई वो सब एक मधुर यादों के जरिये इस पन्नों में आकर सिमट गई।जो यह सफेद पन्ना ही बतलाएगा की हमारे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह थी यह पन्ना इतना ही नहीं बल्कि हमारे तुम्हारे बीच के अपनापन को दर्शायगा,कि हमारे और तुम्हारे बीच कितने मधुर सम्बन्ध थे।जिसे आँखों के जरिए बयां करते थे लेकिन जुबां के जरिए नहीं कर पाते।आँखों के रास्ते धिरे-धिरे कब दिल और जुबां पर आ गये हमें पता ही नही चला।मैं तुम्हारे उतना ही नजदीक हूँ जीतना कल मैं। हमेशा तुम्हारे चेहरे और मुस्कान को ही देखना चाहा क्यों कि तुम्हारे साथ गुजारी वो सुहानी संध्याओ और चांदनी रातों के वे चित्र उभर आते है,जब बहुत समय तक लोगों के बीच मौन भाव से हम एक दूसरे निहारा करते थे बिना स्पर्श किये ही जाने कैसी मादकता तन मन को विभोर किये रहती थी।जाने कैसी तन्मयता में हम डुबे रहते थे •••••एक विचित्र सी स्वप्निल दुनिया में। मैं। कुछ बोलना भी चाहता था तुम्हें। पर जाने क्यों आत्मीयता के ये क्षण अनकहे ही रह जाते । हँसना ,खुश रहना चिड़ियों की तरह चहकना ,फुलो की तरह महकना हमारे खुशी का राज था। क्यों कि मेरी साँस जहाँ की तहा रूक जाती थी तुम्हारे आगे के शब्द को सुनने के लिए ,पर शब्द नहीं आते बड़ी कातर ,करूण याचना भरी दृष्टि से मैं। तुम्हें देखना चाहता था तुम मुझे जरूर भुल गई होगी लेकिन मैं तुम्हें आज भी यादों के। झरोखों में संजोये रखा हूँ।क्यों कि मेरे अंदर एक खास बात यह है कि जब किसी को वादा करता हूँ तो निभाना चाहता हूँ ।हो सकता है कि तुमने नादानी किया हो तो क्या मैं भी करूँ,कदापि नहीं। आज भी मैं उसी तरह से देखता हूँ तुम्हारे दिये हुए चित्र को। मुझे ऐसा महसूस होता हैं कि आज भी मेरी आँखों में रंगीनी और मादकता छा जाती है। तुम्हारे आवाज़ को मैं आज भी सुनता हूँ,तो एकाएक मेरे मन में। विचार आता है कि क्या कुछ मैं उस समय किया वह निरा भ्रम था मेरा कल्पना,मेरा अनुमान नहीं। नहीं उस घटनाओं को कैसे भूल सकता जिसके द्वारा उसके हृदय की एक-एक परत मेरे सामने खुल गये थे।वो आत्मीयता के अनकहे क्षण याद करता हूं तो वो सारे पल मेरे सामने एक-एक करके आने लगते है। याद आता है तुम्हारे हाथ से लिखा वो शायरी आज भी मैं अपने डायरी में संजोये रखा हूँ।उसे कभी -कभी जब पढते है तो हमारी वो भावुकता यथार्थ में बदल जाती है।सपनों के जगह वास्तविकता आ जाते हैं ऐसा महसूस होता है। मैं तो नहीं मानता लेकिन उसमें जो स्पेशल रूप से जिन शायरी को चिन्हित किया गया था वो यही शायरी है जिन्हें आपसे। अवगत कराना चाहता हूँ जो इस प्रकार हैं-------
"ओठों पे एक मुस्कान काफी है,
  दिल मे एक अरमान काफी है।
  कुछ नहीं चाहिए हमें जिन्दगी से,
बस आप हमें ना भुलाना यही एहसान काफी है।
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"अपने दिल में हमारे लिए यही प्यार रखना,
प्यारा सा रिश्ता यु ही बरकरार रखना।
मालूम है आपकी दुनिया सिर्फ हम नहीं,
पर औरों के बीच में हमारा भी ख्याल रखना।
••••••••••••••
Dosti hai any time"ham nibhate some time" yad kiya karo any time"Aap khush rahe all time" yahi duaa hai meri "life time"
इन शायरी को जब मैं पढ़ा तो मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल पैदा हुई जिसके वजह से तुम्हारे तरफ खींचा चला गया और तुम्हारे बारे में सोचने पर मजबूर भी हो गया।और तुम्हारे साथ सारी बातें साझा करने लगा। आज भी तुम्हारे कॅाल का उसी प्रकार इन्तजार रहता है जिस प्रकार तुम सुबह-साम खिड़की के रास्ते देखा करती थी इतना ही नहीं हमारे चले जाने पर मेरे आने का राह देखा करती थी। मैं तुम्हारे अन्दर एक ही कमी पाया था जिसको भरसक प्रयास किया दूर करने का इसलिए कि तुम हमेंशा खुश रहो,वो यही था कि तुम्हारे अन्दर क्रोध का होना । तुम्हारा मेरे उपर इतना ख्याल रखना मेरे बारे में किसी से जिक्र करना और इनतजार करना भोजन साथ करने के लिए और एक दूसरे को प्रेम परिपूर्ण निगाहों से देखना ये सब याद आते है कॅास ओ दिन आज भी आ जाते फिर से हमारी यादें हकीकत हो जाती। मुझे तो यह भी याद आता है तुम्हारा बार -बार मेरे पास आना तुम्हें जो भी अच्छी चीजें मिले पहले उसे दिखाना ,कभी -कभी आँखों से एक टक देखना फिर शर्म से पलके झुकाना ,इतराना ,रूठना फिर अपनेआप मान जाना,हथेलियों का स्पर्श करना और मुझसे यह बात कहना-------"जब मैं रूठती हूँ। या आप रूठते हैं,तो दोनों तरफ से मुझे ही नुकसान होता है,मुझे ही मनाना पड़ता है।" उस आवाज़ में किस प्रकार का लगाव था जो लगाव इतना हुआ कि चाहकर भी भूल नहीं पा रहा था। ओ भी बातें याद आ रही है कि तुम एक बार। मुझसे आकर पूछी -----"कि मैं किसी को भुलना चाहती हूँ लेकिन मैं भूल नहीं पा रही हूँ कृपा करके कोई उपाय बताइए।" तो मैं हल्का मुस्कान लिए हँसा और उत्तर दिया ----" कोशिश करो कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।" इतना ही नहीं और बहुत से ऐसे पल हैं जो उस समय प्रति दिन अपने ही बॅाटल में पानी लाकर पिलाना मुझे दिखाकर खिड़की के रास्ते सजना संवरना मैं न रहूँ तो मेरा इन्तजार करना। वो होली याद आ रही है २०१२ की जब हम घर से वहाँ पहुँचा तो तुम अबीर लेकर आई और बोली -"यह अबीर सिर्फ व सिर्फ आपके लिए रखीं हूँ।" तथा मेरे अनुपस्थिति में होली किसी के साथ नहीं खेलना चेहरा उदास रहना इसका आखिर मतलब क्या था ? तुम्हारे प्रति मेरे अंदर इतनी नजदीकियां बढ गयी कि मुझे भी पता नही चला।किसी सभा में मुझे ही देखना।अन्त में जाते समय हाथों का स्पर्श लेना चाकलेट अपने हाथों से खिलाना और मेरे पास अपने छोटे भाई के बहाने मुझसे बार-बार मिलने की कोशिश करना और घर पहुँचते ही फोन करना और बातें करना उसके बाद भी किसी रिश्ते खुलासा नहीं करना ये क्या दर्शाता है। उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि तुम मानो या न मानो यह रिश्ता बहुत ही प्यारा था।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे तुम्हारे और मेरे बीच कोई न कोई मजबूरी थी जिससे हम आपस में नहीं खुल पाये । तुम मुझसे बोलों या न बोलों,याद करों या ना करो वो पल एक सुहाना था वो पल एक सुंदर था प्यार भरा था चाहे भले ही आत्मीयता के वो क्षण अनकहे रह गये हों जो सिर्फ यांदो के इस पन्नों में सिमटकर रह गयी।इसलिए मैं अब भी यही चाहता हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो आबाद रहो ढेर सारी खुशियाँ तुम्हारी चरण हुवे बस यही हमारी कामना है,तुम्हारा अपने जीवन में खुश रहना ही हमारा सच्चा प्यार है •••• तुम्हारा रमेश कुमार सिंह ♌