शनिवार, 13 जून 2015
मुक्तक
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।
हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।
हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,
ऐसा हुआ मिलन कि हर ख्यालों में आ गई।
@रमेश कुमार सिंह /०७-०६-२०१५
नहीं करते ..
साथी छूटे भी तो भूला नहीं करते
वक्त की नजाकत से छोड़ा नहीं करते
जिसकी आवाज में नम्रता और मिठास हो
ऐसी तस्वीर को दिल से हटाया नहीं करते।
जीने का सहारा मिलता है थोड़ा- थोड़ा,
यूँ ही चले जाने वालों का दिल तोड़ा नहीं करते
जो सीधे अपनी गति में बढते है उसे बढने दो
ऐसे लोगों का कभी रूख मोड़ा नहीं करते।
——@रमेश कुमार सिंह
वक्त की नजाकत से छोड़ा नहीं करते
जिसकी आवाज में नम्रता और मिठास हो
ऐसी तस्वीर को दिल से हटाया नहीं करते।
जीने का सहारा मिलता है थोड़ा- थोड़ा,
यूँ ही चले जाने वालों का दिल तोड़ा नहीं करते
जो सीधे अपनी गति में बढते है उसे बढने दो
ऐसे लोगों का कभी रूख मोड़ा नहीं करते।
——@रमेश कुमार सिंह
उम्मीद (कविता)
मैं जब कभी -कभी कमरे में जाकर,
शान्तिः जहां पर होता है,
चुपके से अपनी लिखी हुई पुराना कागज पढता हूँ
मेरे जीवन का कुछ विवरण अक्षरों में अंकित है
वह एक तरह का पुराना प्रेम-पत्र है
जो लिखकर, रखे थे देने के लिए किसी को,
जिसे पाने वाला काफी दूर चला गया है।
मिलने की कोई उम्मीद नहीं
फिर भी आश लगाये हुए हैं
इसी वजह से उसे कभी -कभी कोने में जाकर,
एकांत जहा पर होता है ।
उस पन्ने को दोहराया करते हैं।
@रमेश कुमार सिंह
शान्तिः जहां पर होता है,
चुपके से अपनी लिखी हुई पुराना कागज पढता हूँ
मेरे जीवन का कुछ विवरण अक्षरों में अंकित है
वह एक तरह का पुराना प्रेम-पत्र है
जो लिखकर, रखे थे देने के लिए किसी को,
जिसे पाने वाला काफी दूर चला गया है।
मिलने की कोई उम्मीद नहीं
फिर भी आश लगाये हुए हैं
इसी वजह से उसे कभी -कभी कोने में जाकर,
एकांत जहा पर होता है ।
उस पन्ने को दोहराया करते हैं।
@रमेश कुमार सिंह
तुम...(कविता)
कहाँ रह रही हो तुम मुझे अकेला छोड़कर
दुनिया की महफिल में मुझे तन्हा छोड़कर
मुसाफिरों की तरह यहाँ चक्कर काटता हूँ
मना लेता मन को,आने की आहट सुनकर
रह जाता है मेरा दिल देखने को मचलकर
झलक न दिखे तो रह जाता है मन तरसकर
अगर तुम आखों से ओझल हो जाती हो तो,
हृदय के अन्दर रह जाता है दिल तड़पकर
अगर सृजन कर जाती प्रेम-प्रस्फुटित कर
सृजन-सृजित मधुर-मिलन संगीनी बनकर
हर लो मन की तपन फूलों से सुसज्जित कर
इतना ध्यानकर मुझमें प्रेम की धारा बहाकर
@रमेश कुमार सिंह
**************
दुनिया की महफिल में मुझे तन्हा छोड़कर
मुसाफिरों की तरह यहाँ चक्कर काटता हूँ
मना लेता मन को,आने की आहट सुनकर
रह जाता है मेरा दिल देखने को मचलकर
झलक न दिखे तो रह जाता है मन तरसकर
अगर तुम आखों से ओझल हो जाती हो तो,
हृदय के अन्दर रह जाता है दिल तड़पकर
अगर सृजन कर जाती प्रेम-प्रस्फुटित कर
सृजन-सृजित मधुर-मिलन संगीनी बनकर
हर लो मन की तपन फूलों से सुसज्जित कर
इतना ध्यानकर मुझमें प्रेम की धारा बहाकर
@रमेश कुमार सिंह
**************
सोमवार, 8 जून 2015
तनहाईयां
जिन्दगी मे रह-रह कर तनहाईया मिलती हैं
हर मोड़ पर ठहर कर रूसवाईया मिलती हैं
न जाने कब तक ये मंजर चलता रहेगा यारों
इस कठिन डगर पर कठिनाइयाँ मिलती हैं
सफर में उसकी यादों की पंक्तियां मिलती हैं
जिसे पन्नों में बिखेरने की शक्तियां मिलती हैं
शब्दों को लिख कर बिताया करता हूँ यारों
कभी पन्नों पर उभरकर झाँकिया मिलती है
झाँकिया में उसकी धुधलीसी तस्वीर मिलती है
आपस में बिताये लम्हों की लकीर मिलती हैं
इन्हीं लकीरों को मैं जोड़ -जोड़ कर यारों
तैयार करता हूँ तो एक बड़ी जंजीर मिलती है
वो दूर जाने के बाद यादों केरूप में मिलती हैं
कभी-कभी वो आवाज़ों के रूप में मिलती है
ये आवाज़ जब दिल के अन्दर गुँजता हैं यारों
तो ख्यालों और सपनों में बार-बार मिलती है।
जब उस समय हमसे वो बारम्बार मिलती थी
लगता था कोई कली में फुल खिल रही थी
उस अ को मैं खिलखिलाता देखकर यारों
मेरे हृदय में खुशियों की लहर उठ जाती थी
------@रमेश कुमार सिंह २३-०५-२०१५
हर मोड़ पर ठहर कर रूसवाईया मिलती हैं
न जाने कब तक ये मंजर चलता रहेगा यारों
इस कठिन डगर पर कठिनाइयाँ मिलती हैं
सफर में उसकी यादों की पंक्तियां मिलती हैं
जिसे पन्नों में बिखेरने की शक्तियां मिलती हैं
शब्दों को लिख कर बिताया करता हूँ यारों
कभी पन्नों पर उभरकर झाँकिया मिलती है
झाँकिया में उसकी धुधलीसी तस्वीर मिलती है
आपस में बिताये लम्हों की लकीर मिलती हैं
इन्हीं लकीरों को मैं जोड़ -जोड़ कर यारों
तैयार करता हूँ तो एक बड़ी जंजीर मिलती है
वो दूर जाने के बाद यादों केरूप में मिलती हैं
कभी-कभी वो आवाज़ों के रूप में मिलती है
ये आवाज़ जब दिल के अन्दर गुँजता हैं यारों
तो ख्यालों और सपनों में बार-बार मिलती है।
जब उस समय हमसे वो बारम्बार मिलती थी
लगता था कोई कली में फुल खिल रही थी
उस अ को मैं खिलखिलाता देखकर यारों
मेरे हृदय में खुशियों की लहर उठ जाती थी
------@रमेश कुमार सिंह २३-०५-२०१५
मंगलवार, 2 जून 2015
तुम्हारे हर सवाल ....(कविता)
तुम्हारे हर सवाल मेरे दिल के अन्दर उलफत मचाता रहेगा।
न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा
तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं,
जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा।
तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा।
तुम्हारे काले-काले घुघराले बाल घटा के जैसे बिखरता रहेगा।
मेरे उपर तुम्हारी आखों का नशा इस तरह चढता चला गया,
कि रोक नही पाया अपनेआपको मैं नशिला बनता चला गया।
@रमेश कुमार सिंह /१३-०५-२०१५
*
न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा
तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं,
जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा।
तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा।
तुम्हारे काले-काले घुघराले बाल घटा के जैसे बिखरता रहेगा।
मेरे उपर तुम्हारी आखों का नशा इस तरह चढता चला गया,
कि रोक नही पाया अपनेआपको मैं नशिला बनता चला गया।
@रमेश कुमार सिंह /१३-०५-२०१५
*
गुरुवार, 21 मई 2015
मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं ••! (कविता)
मैं भी अन्जान था वो भी अन्जान थी
जिन्दगी के सफर में एक पहचान थी
दोनों के नयन जब आपस में मिले
दिल में हलचल हुई मन सजल हो उठे
तब बातों का सिलसिला शुरू हो गए
वो कुछ कहने लगी मैं कुछ कहने लगा
बातों के दरमियान प्यार पनपने लगा
क्षण-प्रतिक्षण एक दूसरे में घुलने लगे
खुशियाँ मिली जैसे फुल खिलने लगे
एक सुहानी डगर का निर्माण हुआ
जिस पर हम दोनो सफर करने लगे
मौज-मस्ती की दुनिया में हम बढ चले
इस दुनिया से कुछ लोग अन्जान थे
उनको ऐसा लगा हम गलत हो गये
इस मोहब्बत पर उनकी नजर लग गई
हुआ वही जो, वे लोग चाहने लगे
जिवन मे एक ऐसा तूफान आ गया
न चाहते हुए भी दिल विछड़ने लगा
वो दूर होती गई मैं दूर होता गया
पल-भर मिलने को दिल तरसता रहा
जब मोबाइल का सिग्नल जुड़ गया
नम्बर का आदान- प्रदान हो गया
कुछ दिनों तक आवाज़ कान में आती रही
एक दिन बातों ही बातों में तकझक हुई
कुछ दिनों तक आवाज़ बन्द हो गई
मै मैसेज के जरिए धन्यवाद देता रहा
अन्ततः मैसेज का उसे कुछ असर हुआ
फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया
दोनों एक दूसरे को देखने के लिए
वो भी तड़पती वहाँ मैं तड़पता यहाँ
वो भी मजबूर वहाँ मैं मजबूर यहाँ
दोनो मिलने की तरकीब बनाते रहे
लेकिन मिलने की कोशिश नाकाम रही
फिर भी भविष्य में आस लगाये हुए हैं
इस उम्मीद से प्यार को बनाए हुए है
मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं
---@रमेश कुमार सिंह
जिन्दगी के सफर में एक पहचान थी
दोनों के नयन जब आपस में मिले
दिल में हलचल हुई मन सजल हो उठे
तब बातों का सिलसिला शुरू हो गए
वो कुछ कहने लगी मैं कुछ कहने लगा
बातों के दरमियान प्यार पनपने लगा
क्षण-प्रतिक्षण एक दूसरे में घुलने लगे
खुशियाँ मिली जैसे फुल खिलने लगे
एक सुहानी डगर का निर्माण हुआ
जिस पर हम दोनो सफर करने लगे
मौज-मस्ती की दुनिया में हम बढ चले
इस दुनिया से कुछ लोग अन्जान थे
उनको ऐसा लगा हम गलत हो गये
इस मोहब्बत पर उनकी नजर लग गई
हुआ वही जो, वे लोग चाहने लगे
जिवन मे एक ऐसा तूफान आ गया
न चाहते हुए भी दिल विछड़ने लगा
वो दूर होती गई मैं दूर होता गया
पल-भर मिलने को दिल तरसता रहा
जब मोबाइल का सिग्नल जुड़ गया
नम्बर का आदान- प्रदान हो गया
कुछ दिनों तक आवाज़ कान में आती रही
एक दिन बातों ही बातों में तकझक हुई
कुछ दिनों तक आवाज़ बन्द हो गई
मै मैसेज के जरिए धन्यवाद देता रहा
अन्ततः मैसेज का उसे कुछ असर हुआ
फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया
दोनों एक दूसरे को देखने के लिए
वो भी तड़पती वहाँ मैं तड़पता यहाँ
वो भी मजबूर वहाँ मैं मजबूर यहाँ
दोनो मिलने की तरकीब बनाते रहे
लेकिन मिलने की कोशिश नाकाम रही
फिर भी भविष्य में आस लगाये हुए हैं
इस उम्मीद से प्यार को बनाए हुए है
मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं
---@रमेश कुमार सिंह
मंगलवार, 19 मई 2015
मैं दुखी हूँ...
मैं दुखी हूँ -
अपने आप से नहीं,
इस समाज से,
पुरे समाज से नही,
समाज में बिखरी हुई,
विसंगतियों से।
जो विश्वास के आड़तले,
खड़ा होकर पुरा करते हैं,
स्वर्थसिद्धि।
मैं दुखी हूँ उनसे -
जो जनता को धोखे में रखकर,
अपने को नतृत्वकर्ता कहते है।
सहारा लेते हैं -
झूठे वादे, झूठे सपने,
झूठे शान-शौकत का।
इन्हीं को हथियार बनाकर,
जनता को करते हैं गुमराह।
इसी में जनता बन जाती है मोहरा।
मैं दुखी हूँ उनसे -
चलने लगते हैं,
उन्हीं के रास्ते पर,
मान लेते हैं उनको भगवान,
सौप देते हैं उनको इन्द्रासन,
नहीं पता है उनके अन्दर,
घर बनाये बैठा है,
शैतान।
मैं दुखी हूँ उनसे -
जो करते हैं,
जनता से विश्वासघात,
समाज को बनाते हैं- दागदार,
कुप्रवृत्ति को जन्म देते हैं,
असमाजिकतत्व को को जन्म देते हैं।
मैं दुखी हूँ उनसे -
ऐसे ही नेतृत्वकर्ता से
ऐसे ही सन्तुष्टीकर्ता से
ऐसे ही समाजिकर्ता से।
-----@रमेश कुमार सिंह
-----१०-०४-२०१५
अपने आप से नहीं,
इस समाज से,
पुरे समाज से नही,
समाज में बिखरी हुई,
विसंगतियों से।
जो विश्वास के आड़तले,
खड़ा होकर पुरा करते हैं,
स्वर्थसिद्धि।
मैं दुखी हूँ उनसे -
जो जनता को धोखे में रखकर,
अपने को नतृत्वकर्ता कहते है।
सहारा लेते हैं -
झूठे वादे, झूठे सपने,
झूठे शान-शौकत का।
इन्हीं को हथियार बनाकर,
जनता को करते हैं गुमराह।
इसी में जनता बन जाती है मोहरा।
मैं दुखी हूँ उनसे -
चलने लगते हैं,
उन्हीं के रास्ते पर,
मान लेते हैं उनको भगवान,
सौप देते हैं उनको इन्द्रासन,
नहीं पता है उनके अन्दर,
घर बनाये बैठा है,
शैतान।
मैं दुखी हूँ उनसे -
जो करते हैं,
जनता से विश्वासघात,
समाज को बनाते हैं- दागदार,
कुप्रवृत्ति को जन्म देते हैं,
असमाजिकतत्व को को जन्म देते हैं।
मैं दुखी हूँ उनसे -
ऐसे ही नेतृत्वकर्ता से
ऐसे ही सन्तुष्टीकर्ता से
ऐसे ही समाजिकर्ता से।
-----@रमेश कुमार सिंह
-----१०-०४-२०१५
रविवार, 17 मई 2015
मेरी जिंदगी का एक लम्हा ....!! (संस्मरण)
अपने गाँव से लेकर बनारस तक खुशी पूर्वक शिक्षा लेकर आनन्द पूर्वक जिवन व्यतीत कर रहे थे तभी एक तुफान आया जो हमारी जीवन के बरबादी का शुरूआत लेकर। एक फूल की तरह हमारी जिन्दगी सवंर ही रही थी कि बारिश के साथ आया तूफान फूल के पंखुड़ियों को झड़ा दिया बस बाकी रह गया वो पत्तियां और टहनिया जिसके जरिए जीना है ।इसी बिच आशा की किरण जगी, जिसके सहारे मैं आगे बढ सकता था वो शिक्षण का आधार था। नहीं पता था इस आशा की किरण में कहीं निराशा भरी दुनिया कि भी शुरूवात होती है यही आधार ने एक तरफ जीने की कला सीखाई वही दूसरी तरफ संघर्ष करने की या समस्याओं से निपटने की राह दिखाई।
उसी आशा की किरण के सहारे मैं आगे बढ सकता था । तभी इस पतझड़ रूपी दुनिया में कोई बारिश की बुन्दे टपकाकर ताजा करने की कोशिश की और उसी के सहारे यह पतझड़ धिरे-धिरे हरा-भरा होकर लहलहाने लगा और खुशी के मारे झुम उठा इतना झुम उठा कि वह भूल गया कि पतझड़ की प्रक्रिया अपने समय पर निरन्तर चलते रहती है और इसी के साथ वो धिरे-धिरे आँखों के रास्ते दिल में उतर गई।बस सिलसिला शुरू हुआ एक सुहाना पल का पता नहीं था इस सुहाने पल में छिपी हुई गम की बदलीं है जो छायेगी तो छाये ही रह जायेगी ।
@रमेश कुमार सिंह ♌,०८-०२-२०१३
http://shabdanagari.in/website/article/मेरेजिन्दगीकाएकलम्हासंस्मरण
उसी आशा की किरण के सहारे मैं आगे बढ सकता था । तभी इस पतझड़ रूपी दुनिया में कोई बारिश की बुन्दे टपकाकर ताजा करने की कोशिश की और उसी के सहारे यह पतझड़ धिरे-धिरे हरा-भरा होकर लहलहाने लगा और खुशी के मारे झुम उठा इतना झुम उठा कि वह भूल गया कि पतझड़ की प्रक्रिया अपने समय पर निरन्तर चलते रहती है और इसी के साथ वो धिरे-धिरे आँखों के रास्ते दिल में उतर गई।बस सिलसिला शुरू हुआ एक सुहाना पल का पता नहीं था इस सुहाने पल में छिपी हुई गम की बदलीं है जो छायेगी तो छाये ही रह जायेगी ।
@रमेश कुमार सिंह ♌,०८-०२-२०१३
http://shabdanagari.in/website/article/मेरेजिन्दगीकाएकलम्हासंस्मरण
सोमवार, 27 अप्रैल 2015
मैं बहुत उदास हूँ •••!(कविता)
क्या अब मेरे,
सुख भरे दिन नहीं लौटेगें।
क्या अब मेरे कर्ण ,
उस ध्वनि को नहीं सुन पायेगें
क्य अब मेरे हँसीं,
उस हँसीं में नहीं मिल पायेगें।
क्या अब कोई,
मुझसे यह नही कहेगा-
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,
मैं भी तेरे साथ में हूँ।
यदि मूझमे यह प्रवृत्ति अनवरत है।
तो इसलिए कि-
हो सकता है कोई मेरे जैसा-
उदास, मनमारे हुए।
आने वाले कल में आये।
और मेरे इस उदास भरे जिन्दगी में,
कोई संगीत सुनाकर,
हो सकता है दीप जलाये।
और दुबारा यही बात कहे-
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,
मैं भी तेरे साथ में हूँ।
दिन ढल चुका है।
शाम हो चुकी है।
पंछी अपने बसेरा की तरफ लौट रहे हैं।
क्षितिज में-
धुन्ध का पहरा हो रहा है।
सामने एक नदी दीख रही है,
उसमें लहरें चल रही है।
जो बहुत उदास है।
मैं बहुत उदास हूँ।
सुख भरे दिन नहीं लौटेगें।
क्या अब मेरे कर्ण ,
उस ध्वनि को नहीं सुन पायेगें
क्य अब मेरे हँसीं,
उस हँसीं में नहीं मिल पायेगें।
क्या अब कोई,
मुझसे यह नही कहेगा-
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,
मैं भी तेरे साथ में हूँ।
यदि मूझमे यह प्रवृत्ति अनवरत है।
तो इसलिए कि-
हो सकता है कोई मेरे जैसा-
उदास, मनमारे हुए।
आने वाले कल में आये।
और मेरे इस उदास भरे जिन्दगी में,
कोई संगीत सुनाकर,
हो सकता है दीप जलाये।
और दुबारा यही बात कहे-
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,
मैं भी तेरे साथ में हूँ।
दिन ढल चुका है।
शाम हो चुकी है।
पंछी अपने बसेरा की तरफ लौट रहे हैं।
क्षितिज में-
धुन्ध का पहरा हो रहा है।
सामने एक नदी दीख रही है,
उसमें लहरें चल रही है।
जो बहुत उदास है।
मैं बहुत उदास हूँ।
—– @रमेश कुमार सिंह
रविवार, 26 अप्रैल 2015
धरती में कंपन (कविता)
सहसा,
अचानक बढ़ीं धड़कन,
हृदय में नहीं,
धरती के गर्भ में।
मची हलचल,
मस्तिष्क में नहीं,
भु- पर्पटी में।
सो गये सब,
मनुष्य सहित,
बड़े-बड़े मकान।
सो गये सब
पशुओं सहित,
बड़े-बड़े वृक्ष।
मचा कोहराम,
जन- जीवन में।
हुआ अस्त-व्यस्त
लोगों का जीवन।
फट गया कहीं-कहीं,
धरती का कपड़ा।
टूट गया हर -कहीं,
कोई धागा नहीं,
ढेर सारे मकान।
उजड़ गया सब,
चिड़िया का घोसला सहित,
मानव का आवास।
यहाँ आया था,
कोई जादूगर नहीं,
प्रलय विनाशकारी।
मचा गया प्रलय का ताण्डव,
यह क्षणभर का विपदा,
दे गया आँखों में आँसू।
बहुत से लोग चले गये,
कहीं मौज मस्ती करने नहीं,
अपनी अन्तिम यात्रा पर।
दे गये पिड़ा सिर्फ़,
अपनों को ही नहीं,
पुरे मानवता को----
यहीं हुआ धरती में कंपन।
--------@रमेश कुमार सिंह
-----------२६-०४-२०१५
अचानक बढ़ीं धड़कन,
हृदय में नहीं,
धरती के गर्भ में।
मची हलचल,
मस्तिष्क में नहीं,
भु- पर्पटी में।
सो गये सब,
मनुष्य सहित,
बड़े-बड़े मकान।
सो गये सब
पशुओं सहित,
बड़े-बड़े वृक्ष।
मचा कोहराम,
जन- जीवन में।
हुआ अस्त-व्यस्त
लोगों का जीवन।
फट गया कहीं-कहीं,
धरती का कपड़ा।
टूट गया हर -कहीं,
कोई धागा नहीं,
ढेर सारे मकान।
उजड़ गया सब,
चिड़िया का घोसला सहित,
मानव का आवास।
यहाँ आया था,
कोई जादूगर नहीं,
प्रलय विनाशकारी।
मचा गया प्रलय का ताण्डव,
यह क्षणभर का विपदा,
दे गया आँखों में आँसू।
बहुत से लोग चले गये,
कहीं मौज मस्ती करने नहीं,
अपनी अन्तिम यात्रा पर।
दे गये पिड़ा सिर्फ़,
अपनों को ही नहीं,
पुरे मानवता को----
यहीं हुआ धरती में कंपन।
--------@रमेश कुमार सिंह
-----------२६-०४-२०१५
गुरुवार, 9 अप्रैल 2015
निश्छल प्रेम कथा कह रही हो!!
तुमसे जब होता है,
नयनोन्मीलन।
मुझे ऐसा एहसास होता है।
तुम्हारी अधरों के,
मधुर कंगारो ने।
तुम्हारी ध्वनि की,
गुंजारो ने ।
तुम्हारी मधुसरिता सी,
हँसीं तरल।
रजनीगंधा की तरह,
कली खिली हो।
राग अनंत लिये,
अपने अधरों में।
हँसीनी सी सुन्दर,
पलको को उठाये हुअे।
मौन की भाषा में।
विस्फारित नयनो से,
निश्छल प्रेम कथा कह रही हो
बुधवार, 1 अप्रैल 2015
दु:ख (कविता)
सुबह में मैं बहुत खुश था
लिये मन में सपने सुंदर था
अपने घर की ओर जा रहा था
खुशियों का लहर मन में था
तभी अचानक वो आया था
दुखों का लिया पहाड़ था।
सबको बाटना चाहता था।
बाटा सबको थोड़ा -थोड़ा
हिस्सा हमें भी दे रहा था
नहीं लेने का कर रहा था
उन लोगों से गुजारिश
तकाजा नियम का दे रहा था।
नियम का दिखावा कर
आलोक नियम का दिखाकर,
कर दिया सबको अन्दर यही
मेरा दुख भरा समन्दर।
------०२-०२-२०१५-------
--------रमेश कुमार सिंह ♌
सोमवार, 30 मार्च 2015
जाम-पे-जाम (मुक्तक)
पैग - पे - पैग हम तो चढाते रहे।
जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।
जैसे जनन्त में हूँ ऐसा हुआ असर,
आनंद,कुछ समय गुदगुदाते रहे।
पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।
दोनों मिलकर नशामे भीगाते रहे।
बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।
कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।
••••••रमेश कुमार सिंह ♌ ••• ••••••०३---०३---२०१५•••••
गुरुवार, 26 मार्च 2015
आज भी याद है ---(कविता)
आज भी याद है,
उसकी हँसीं,
मुस्कुराहट
अधरों से निकले,
वो लब्ज जब,
हृदयंगम,
होते हैं।
तो मैं खो जाता हूँ
उसकी यादों में,
टटोलने लगता हूँ,
बिताये हुए।
वो सारे पल-
वो स्पर्श,
कभी कभी ,
नाराजगी को दिखाना ,
मुझसे दूर जाकर,
बैठ जाना,
फिर थोड़ी देर बाद,
वापस आना,
अपनी गलती को,
सहर्ष स्वीकार करना।
फिर मुस्कुराते हुए,
शरमाना।
होने लगती है,
सब बातें।
अन्त में हाथ लगती है,
उसके हमारे बीच का
कार्यानुभव,
जिसमें यादों के रास्ते,
करते हैं विचरण!!
----रमेश कुमार सिंह ♌
----०८-०३-२०१५
•
उसकी हँसीं,
मुस्कुराहट
अधरों से निकले,
वो लब्ज जब,
हृदयंगम,
होते हैं।
तो मैं खो जाता हूँ
उसकी यादों में,
टटोलने लगता हूँ,
बिताये हुए।
वो सारे पल-
वो स्पर्श,
कभी कभी ,
नाराजगी को दिखाना ,
मुझसे दूर जाकर,
बैठ जाना,
फिर थोड़ी देर बाद,
वापस आना,
अपनी गलती को,
सहर्ष स्वीकार करना।
फिर मुस्कुराते हुए,
शरमाना।
होने लगती है,
सब बातें।
अन्त में हाथ लगती है,
उसके हमारे बीच का
कार्यानुभव,
जिसमें यादों के रास्ते,
करते हैं विचरण!!
----रमेश कुमार सिंह ♌
----०८-०३-२०१५
•
सोमवार, 23 मार्च 2015
यादें (कविता)
हे मन !
क्यों उदास है?
क्या सोच रहा है?
क्यों याद कर रहा है ?उसको
उसका अभी -भी इन्तजार है ,
उसने क्या दिया था तुम्हें,
खुशहाल भरे ओ पल,
आनन्द भरी वो बातें,
इजहार के वो दिन,
क्या यही याद कर रहा है तुम,
वो तो तुम्हारे पास सब
छोड़ कर गई है।
उसका रूप बदलकर गई है।
नाम है जिसका-यादें।
उन यादों के झरोखों में,
झाककर देखोगे जब,
दिखाई देगा वो सब।
साथ-साथ रहने की-
चाहे वो बाग हो।
चाहे वो सफर हो।
चाहे वो मन्दिर हो।
चाहे वो महफ़िल हो।
चाहे वो प्यार हो।
चाहे वो इजहार हो।
सब हैं यादों में कैद।
वो लेकर क्या गई?
सिर्फ व सिर्फ एक नाम-
"बेवफा"!!!!
---------रमेश कुमार सिंह ♌
---------२९-०१-२०१५
रविवार, 22 मार्च 2015
तुम कहाँ हो???
मन कि चन्चलता,
देखने को कहता,
तुम्हें ढुढ रही हूँ,
जानते हों क्यों,
आज प्रेम दिवस है।
हृदय व्याकुलता,
आने को कहता,
राह देख रही हूँ,
जानते हों क्यों?
आज प्रेम दिवस हैं।
फुलो कि बगिया,
से फुल गुलाबिया,
तोड़ कर लाया हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
स्नेह भरे फुलो को,
तुम्हीं को देने को,
लेकर चला आया हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
इन लिए पुष्पों को,
अपनी खुली पलको को,
समेट नहीं पाती हूँ,
जानते हो क्यों?
आज प्रेम दिवस है।
मुँदी पलकों,
बिखरी अलको,
होठों की जुंबिस,
चुम रही हूँ,
जानते हो क्यों ?
आज प्रेम दिवस है।
तुम कहाँ हो ?
अनजानी राहों,
अकेली बैठीं हूँ,
जानते हो क्यों ?
आज प्रेम दिवस है।
•••••••••••••••••••••••••••••••।
------------- रमेश कुमार सिंह --।
---------------१४-०२-२०१५----।
•••••••••••••••••••••••••••••••।
तुम्हारी याद ---
यादें तुम्हारी मेरे पास बहुत है ,
किस पल को याद करूँ मैं।
सभी पलो में हलचल मची है,
किस-किस पर मन दौड़ाऊँ मैं।
मन चारों दिशाओं मे जाते हैं,
किधर-किधर उसे मोड़ दू मैं ।
सब कुछ बातें समझ नहीं पाते,
कैसे बिताये लम्हे याद करूँ मैं ।
जब -जब याद तुम्हें करते हैं ,
उस वक्त सोचने लगता हूँ मैं।
खुराफातें सब मन में आ जाते हैं,
कैसे इन सबको हटाऊँ मैं ।
हर क्षण आती बहुत सी बातें,
कैसे हर क्षण को विताऊँ मैं।
हृदय में मेरे हर पल चुभतें,
जब गुजरें लम्हे याद करता हूँ मैं।
हृदय तल पर वो पल उमड़ते हैं,
कैसे तुम्हारे दिल को बतलाऊँ मैं।
बातें एक-एक करके बित चुके हैं ,
कैसे तुम्हें आकर समझाऊँ मैं ।
कल्पित शब्दों से वर्णन कर-करके,
कैसे परिस्थितियों को भुलाऊँ मैं।
समाप्ति के कगार पर लम्हे आपके,
कैसे तुम्हारे दिल के अन्दर आऊँ मैं।
--------रमेश कुमार सिंह ♌
बुधवार, 11 मार्च 2015
वो यादें•••• (संस्मरण)
ईशीका——
हमारे और तुम्हारे बीच जितनी भी क्रियाएँ हुई वो सब एक मधुर यादों के जरिये इस पन्नों में आकर सिमट गई।जो यह सफेद पन्ना ही बतलाएगा की हमारे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह थी यह पन्ना इतना ही नहीं बल्कि हमारे तुम्हारे बीच के अपनापन को दर्शायगा,कि हमारे और तुम्हारे बीच कितने मधुर सम्बन्ध थे।जिसे आँखों के जरिए बयां करते थे लेकिन जुबां के जरिए नहीं कर पाते।आँखों के रास्ते धिरे-धिरे कब दिल और जुबां पर आ गये हमें पता ही नही चला।मैं तुम्हारे उतना ही नजदीक हूँ जीतना कल मैं। हमेशा तुम्हारे चेहरे और मुस्कान को ही देखना चाहा क्यों कि तुम्हारे साथ गुजारी वो सुहानी संध्याओ और चांदनी रातों के वे चित्र उभर आते है,जब बहुत समय तक लोगों के बीच मौन भाव से हम एक दूसरे निहारा करते थे बिना स्पर्श किये ही जाने कैसी मादकता तन मन को विभोर किये रहती थी।जाने कैसी तन्मयता में हम डुबे रहते थे •••••एक विचित्र सी स्वप्निल दुनिया में। मैं। कुछ बोलना भी चाहता था तुम्हें। पर जाने क्यों आत्मीयता के ये क्षण अनकहे ही रह जाते ।
हँसना ,खुश रहना चिड़ियों की तरह चहकना ,फुलो की तरह महकना हमारे खुशी का राज था। क्यों कि मेरी साँस जहाँ की तहा रूक जाती थी तुम्हारे आगे के शब्द को सुनने के लिए ,पर शब्द नहीं आते बड़ी कातर ,करूण याचना भरी दृष्टि से मैं। तुम्हें देखना चाहता था तुम मुझे जरूर भुल गई होगी लेकिन मैं तुम्हें आज भी यादों के। झरोखों में संजोये रखा हूँ।क्यों कि मेरे अंदर एक खास बात यह है कि जब किसी को वादा करता हूँ तो निभाना चाहता हूँ ।हो सकता है कि तुमने नादानी किया हो तो क्या मैं भी करूँ,कदापि नहीं। आज भी मैं उसी तरह से देखता हूँ तुम्हारे दिये हुए चित्र को। मुझे ऐसा महसूस होता हैं कि आज भी मेरी आँखों में रंगीनी और मादकता छा जाती है। तुम्हारे आवाज़ को मैं आज भी सुनता हूँ,तो एकाएक मेरे मन में। विचार आता है कि क्या कुछ मैं उस समय किया वह निरा भ्रम था मेरा कल्पना,मेरा अनुमान नहीं। नहीं उस घटनाओं को कैसे भूल सकता जिसके द्वारा उसके हृदय की एक-एक परत मेरे सामने खुल गये थे।वो आत्मीयता के अनकहे क्षण याद करता हूं तो वो सारे पल मेरे सामने एक-एक करके आने लगते है।
याद आता है तुम्हारे हाथ से लिखा वो शायरी आज भी मैं अपने डायरी में संजोये रखा हूँ।उसे कभी -कभी जब पढते है तो हमारी वो भावुकता यथार्थ में बदल जाती है।सपनों के जगह वास्तविकता आ जाते हैं ऐसा महसूस होता है। मैं तो नहीं मानता लेकिन उसमें जो स्पेशल रूप से जिन शायरी को चिन्हित किया गया था वो यही शायरी है जिन्हें आपसे। अवगत कराना चाहता हूँ जो इस प्रकार हैं-------
"ओठों पे एक मुस्कान काफी है,
दिल मे एक अरमान काफी है।
कुछ नहीं चाहिए हमें जिन्दगी से,
बस आप हमें ना भुलाना यही एहसान काफी है।
******************
"अपने दिल में हमारे लिए यही प्यार रखना,
प्यारा सा रिश्ता यु ही बरकरार रखना।
मालूम है आपकी दुनिया सिर्फ हम नहीं,
पर औरों के बीच में हमारा भी ख्याल रखना।
••••••••••••••
Dosti hai any time"ham nibhate some time" yad kiya karo any time"Aap khush rahe all time" yahi duaa hai meri "life time"
इन शायरी को जब मैं पढ़ा तो मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल पैदा हुई जिसके वजह से तुम्हारे तरफ खींचा चला गया और तुम्हारे बारे में सोचने पर मजबूर भी हो गया।और तुम्हारे साथ सारी बातें साझा करने लगा। आज भी तुम्हारे कॅाल का उसी प्रकार इन्तजार रहता है जिस प्रकार तुम सुबह-साम खिड़की के रास्ते देखा करती थी इतना ही नहीं हमारे चले जाने पर मेरे आने का राह देखा करती थी। मैं तुम्हारे अन्दर एक ही कमी पाया था जिसको भरसक प्रयास किया दूर करने का इसलिए कि तुम हमेंशा खुश रहो,वो यही था कि तुम्हारे अन्दर क्रोध का होना । तुम्हारा मेरे उपर इतना ख्याल रखना मेरे बारे में किसी से जिक्र करना और इनतजार करना भोजन साथ करने के लिए और एक दूसरे को प्रेम परिपूर्ण निगाहों से देखना ये सब याद आते है कॅास ओ दिन आज भी आ जाते फिर से हमारी यादें हकीकत हो जाती। मुझे तो यह भी याद आता है तुम्हारा बार -बार मेरे पास आना तुम्हें जो भी अच्छी चीजें मिले पहले उसे दिखाना ,कभी -कभी आँखों से एक टक देखना फिर शर्म से पलके झुकाना ,इतराना ,रूठना फिर अपनेआप मान जाना,हथेलियों का स्पर्श करना और मुझसे यह बात कहना-------"जब मैं रूठती हूँ। या आप रूठते हैं,तो दोनों तरफ से मुझे ही नुकसान होता है,मुझे ही मनाना पड़ता है।" उस आवाज़ में किस प्रकार का लगाव था जो लगाव इतना हुआ कि चाहकर भी भूल नहीं पा रहा था। ओ भी बातें याद आ रही है कि तुम एक बार। मुझसे आकर पूछी -----"कि मैं किसी को भुलना चाहती हूँ लेकिन मैं भूल नहीं पा रही हूँ कृपा करके कोई उपाय बताइए।" तो मैं हल्का मुस्कान लिए हँसा और उत्तर दिया ----" कोशिश करो कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।" इतना ही नहीं और बहुत से ऐसे पल हैं जो उस समय प्रति दिन अपने ही बॅाटल में पानी लाकर पिलाना मुझे दिखाकर खिड़की के रास्ते सजना संवरना मैं न रहूँ तो मेरा इन्तजार करना। वो होली याद आ रही है २०१२ की जब हम घर से वहाँ पहुँचा तो तुम अबीर लेकर आई और बोली -"यह अबीर सिर्फ व सिर्फ आपके लिए रखीं हूँ।" तथा मेरे अनुपस्थिति में होली किसी के साथ नहीं खेलना चेहरा उदास रहना इसका आखिर मतलब क्या था ? तुम्हारे प्रति मेरे अंदर इतनी नजदीकियां बढ गयी कि मुझे भी पता नही चला।किसी सभा में मुझे ही देखना।अन्त में जाते समय हाथों का स्पर्श लेना चाकलेट अपने हाथों से खिलाना और मेरे पास अपने छोटे भाई के बहाने मुझसे बार-बार मिलने की कोशिश करना और घर पहुँचते ही फोन करना और बातें करना उसके बाद भी किसी रिश्ते खुलासा नहीं करना ये क्या दर्शाता है। उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि तुम मानो या न मानो यह रिश्ता बहुत ही प्यारा था।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे तुम्हारे और मेरे बीच कोई न कोई मजबूरी थी जिससे हम आपस में नहीं खुल पाये । तुम मुझसे बोलों या न बोलों,याद करों या ना करो वो पल एक सुहाना था वो पल एक सुंदर था प्यार भरा था चाहे भले ही आत्मीयता के वो क्षण अनकहे रह गये हों जो सिर्फ यांदो के इस पन्नों में सिमटकर रह गयी।इसलिए मैं अब भी यही चाहता हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो आबाद रहो ढेर सारी खुशियाँ तुम्हारी चरण हुवे बस यही हमारी कामना है,तुम्हारा अपने जीवन में खुश रहना ही हमारा सच्चा प्यार है •••• तुम्हारा रमेश कुमार सिंह ♌
"ओठों पे एक मुस्कान काफी है,
दिल मे एक अरमान काफी है।
कुछ नहीं चाहिए हमें जिन्दगी से,
बस आप हमें ना भुलाना यही एहसान काफी है।
******************
"अपने दिल में हमारे लिए यही प्यार रखना,
प्यारा सा रिश्ता यु ही बरकरार रखना।
मालूम है आपकी दुनिया सिर्फ हम नहीं,
पर औरों के बीच में हमारा भी ख्याल रखना।
••••••••••••••
Dosti hai any time"ham nibhate some time" yad kiya karo any time"Aap khush rahe all time" yahi duaa hai meri "life time"
इन शायरी को जब मैं पढ़ा तो मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल पैदा हुई जिसके वजह से तुम्हारे तरफ खींचा चला गया और तुम्हारे बारे में सोचने पर मजबूर भी हो गया।और तुम्हारे साथ सारी बातें साझा करने लगा। आज भी तुम्हारे कॅाल का उसी प्रकार इन्तजार रहता है जिस प्रकार तुम सुबह-साम खिड़की के रास्ते देखा करती थी इतना ही नहीं हमारे चले जाने पर मेरे आने का राह देखा करती थी। मैं तुम्हारे अन्दर एक ही कमी पाया था जिसको भरसक प्रयास किया दूर करने का इसलिए कि तुम हमेंशा खुश रहो,वो यही था कि तुम्हारे अन्दर क्रोध का होना । तुम्हारा मेरे उपर इतना ख्याल रखना मेरे बारे में किसी से जिक्र करना और इनतजार करना भोजन साथ करने के लिए और एक दूसरे को प्रेम परिपूर्ण निगाहों से देखना ये सब याद आते है कॅास ओ दिन आज भी आ जाते फिर से हमारी यादें हकीकत हो जाती। मुझे तो यह भी याद आता है तुम्हारा बार -बार मेरे पास आना तुम्हें जो भी अच्छी चीजें मिले पहले उसे दिखाना ,कभी -कभी आँखों से एक टक देखना फिर शर्म से पलके झुकाना ,इतराना ,रूठना फिर अपनेआप मान जाना,हथेलियों का स्पर्श करना और मुझसे यह बात कहना-------"जब मैं रूठती हूँ। या आप रूठते हैं,तो दोनों तरफ से मुझे ही नुकसान होता है,मुझे ही मनाना पड़ता है।" उस आवाज़ में किस प्रकार का लगाव था जो लगाव इतना हुआ कि चाहकर भी भूल नहीं पा रहा था। ओ भी बातें याद आ रही है कि तुम एक बार। मुझसे आकर पूछी -----"कि मैं किसी को भुलना चाहती हूँ लेकिन मैं भूल नहीं पा रही हूँ कृपा करके कोई उपाय बताइए।" तो मैं हल्का मुस्कान लिए हँसा और उत्तर दिया ----" कोशिश करो कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।" इतना ही नहीं और बहुत से ऐसे पल हैं जो उस समय प्रति दिन अपने ही बॅाटल में पानी लाकर पिलाना मुझे दिखाकर खिड़की के रास्ते सजना संवरना मैं न रहूँ तो मेरा इन्तजार करना। वो होली याद आ रही है २०१२ की जब हम घर से वहाँ पहुँचा तो तुम अबीर लेकर आई और बोली -"यह अबीर सिर्फ व सिर्फ आपके लिए रखीं हूँ।" तथा मेरे अनुपस्थिति में होली किसी के साथ नहीं खेलना चेहरा उदास रहना इसका आखिर मतलब क्या था ? तुम्हारे प्रति मेरे अंदर इतनी नजदीकियां बढ गयी कि मुझे भी पता नही चला।किसी सभा में मुझे ही देखना।अन्त में जाते समय हाथों का स्पर्श लेना चाकलेट अपने हाथों से खिलाना और मेरे पास अपने छोटे भाई के बहाने मुझसे बार-बार मिलने की कोशिश करना और घर पहुँचते ही फोन करना और बातें करना उसके बाद भी किसी रिश्ते खुलासा नहीं करना ये क्या दर्शाता है। उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि तुम मानो या न मानो यह रिश्ता बहुत ही प्यारा था।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे तुम्हारे और मेरे बीच कोई न कोई मजबूरी थी जिससे हम आपस में नहीं खुल पाये । तुम मुझसे बोलों या न बोलों,याद करों या ना करो वो पल एक सुहाना था वो पल एक सुंदर था प्यार भरा था चाहे भले ही आत्मीयता के वो क्षण अनकहे रह गये हों जो सिर्फ यांदो के इस पन्नों में सिमटकर रह गयी।इसलिए मैं अब भी यही चाहता हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो आबाद रहो ढेर सारी खुशियाँ तुम्हारी चरण हुवे बस यही हमारी कामना है,तुम्हारा अपने जीवन में खुश रहना ही हमारा सच्चा प्यार है •••• तुम्हारा रमेश कुमार सिंह ♌
सदस्यता लें
संदेश (Atom)