यादगार पल

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रविवार, 17 जनवरी 2016

संस्मरण -: ओ मेरे साथियों •••••

मुझे आज भी ख्याल है कि  २००९-१० में सासाराम रेलवे स्टेशन से एक किलो मिटर दूर उत्तर की ओर जा रही सड़क से एक चौड़ी गली अन्दर की तरफ गई है शायद उस गली वाले इलाके को  वी०आई०पी० मोहल्ला के नाम से जाना जाता है तथा उसी गली के अन्त में एक आधे अधूरे मकान में दो रुम हैं एक रुम अभी भी अन्दर अधूरा है। एक रुम में बरसात में पानी बहुत ही आसानी से टपक कर हम सभी को भिगोकर यह प्रमाण देता था मेरी नई जवानी में ही बुढापा आ गई है। सहयोग की जरूरत है लेकिन कौन सहयोग करता उस मकान के वारिस होते हुए भी लावारिस की तरह लग रहा था। किरायेदार को अपने रहने से मतलब था और मालिक को सिर्फ पैसा लेने से मतलब था। दोनों अपने अपने जगह पर अडिग थे। खैर ये रही उस जगह की बात जहां हम छ:साथी एक साथ रहते थे।
             हम छ: साथी वहाँ डेरा इसलिए रखा था कि उस समय बी०एड० हरि नरायन सिंह इन्सट्युट आॅफ टीचर्स एजुकेशन बैजला सासाराम रोहतास बिहार से बी०एड० कर रहे थे। उसी के दौरान हम छ: साथी (दीपक, चन्दन, दीपक राय,राधेश्याम,मानिक चन्द) कब किस प्रकार धीरे -धीरे एक मित्र परिधि के अन्दर हो जाते हैं पता ही नहीं चला हमारे सभी (पाँचों) साथी पाँच  इलाके के रहने वाले थे और सभी साथियों में अलग-अलग विशेषताएँ हैं। जो उस समय झलकते रहे और अपने व्यवहार को सभी शिक्षक गण और छात्रों के बीच दिखाते रहे।
              हमें बखूबी याद है जब मैं पहली बार नमाकंन के बाद क्लास रुम में क्लास करने के लिए अपने जगह पर बैठा था।उसी वक्त हम सभी लोग एक दूसरे से अन्जान थे।जान पहचान धिरे-धिरे बना रहे थे। हमारे बीच एक दो रोज बाद ही मेरे बातों से प्रभावित होकर मेरे पहले मित्र राधेश्याम जी मिले उस दिन से अलवेस्टर से छाया हुआ हाल के नीचे वर्मा विल्डिग में अपने शब्दों के जरिए आवाज़ों के माध्यम से बातें होने लगी। हमारे मित्र राधेश्याम जी सकल से सुन्दर लम्बे पतले शरीर वाले चहरे पर बराबर मुस्कान लिए मिलनसार प्रवृत्ति रखने वाले हमारे पहले मित्र बनने की कोशिश किये और बन गये। और दिल से ईमान्दारी पूर्वक पढाई के अन्त तक ही नहीं बल्कि आज भी शालीनता का भाव लिए दूरभाष से बाते करते हैं। ये रहने वाले रोहतास जिला के कोचस प्रखण्ड बिहार के रहनेवाले थे। हमेशा सुमधुर वाणी से भईया शब्द कहकर पुकारते हैं।
               इन्हीं के माध्यम से हमारे दूसरे मित्र के रूप में चन्दन कुमार राय जी से मुलाकात हुई गोलमटोल सुन्दर शरीर अन्दर कुट-कुट कर भरा हुआ समाजिक सहयोग का भाव ,परोपकार की भावना लिए हर धड़ी सहयोग हर किसी का करने के लिये तत्परता दिखाने वाले चन्दन जी के पास कभी कभी क्रोध उनके उपर अपना हक जताने लगता था,तो मैं बीच-बीच में रोकने का प्रयास करता रहा और मिलजुल कर चलने की बातें करता रहा। इनके पास अपनी एक बाइक 🚲 थी पिता इनके शिक्षक थे। इनसे परिचय होने के बाद हम तीन साथी हो गये। आपस में एक जगह बैठना ,पढना,लिखना,किताब मैटर आदि का आदान-प्रदान करना इत्यादि सब चलने लगा। मुझसे प्रभावित होकर चन्दन जी मुझे उसी रुम में थोड़ी जगह दी। इस प्रकार हम तीन साथी उस आधे-अधूरे किराये के मकान में रहने लगे ये रोहतास जिला के बिक्रमगंज नटवार के रहने वाले हैं।
             तीसरे साथी के रूप में एक दो माह बाद हमारे एक शिक्षक के माध्यम से दीपक स्वर्णकार हम लोगों के बीच में आये जो रहने वाले बोकारो सिटी के गोमिया नामक स्थान से झारखंड प्रदेश के रहने वाले हैं। जो बिलकुल स्वर्ण सी आभा लिए हम लोगों के मित्र मंडली में उपस्थित हुए। और हम लोगों के साथ रहना खाना घूमना फिरना प्रारम्भ हो गया। इनके अन्दर एक खास विशेषताएं रही माहौल को प्रेम मय बनाकर रखने की और बातों के जरिये गोल -गोल घुमाने की प्रवृति रही।
              अब हम लोग कुल मिलाकर चार मित्र हो गये। एक ही जगह रहना एक ही जगह खाना एक ही साथ बातें करना विद्यालय जाना-आना  हँसीं खुशी से एक दिन बिता रहे थे ।
              कुछ ही दिनों बाद चौथेसाथी के रुप में बातों और विचारों के माध्यम से हमारे मित्र मंडली में संख्या बढ़ी। आ गये हमारे बीच में दीपक राय जी ये भी हेल्दी शरीर वाले पूजापाठ में विश्वास रखने वाले अपने आराध्य गुरु के प्रति माला बैठ कर जपने वाले और शान्तिः के साथ -साथ क्रोध को भी पास में रखा करतें थे। जब जैसा जरूरत पड़ता था तब क्रोध का प्रयोग जरूर करते थे। हम लोग के रुम से कुछ दूरी पर रहा करते थे लेकिन थोड़े समय बाद हम लोगों के साथ ही कमरे में रहने लगे।  ये बिहार राज्य के जहानाबाद जिला के हैं।
             बहुत मौज मस्ती के साथ दिन कट रहा था विद्यालय चल रहा था तबतक इसी बीच हम लोगों का विद्यालय नये मकान में चला गया अलवेस्टर के जगह से अच्छा मकान ,हाल, लाईब्रेरी कार्यालय सब मिल गया । अब हमलोगो के रुम से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां आने -जाने में कठिनाइयाँ तो नहीं लेकिन समय अधिक लगने लगा ।
              हम सभी लोग विद्यालय या रुम पर एक साथ रहकर मौज मस्ती के साथ रहने लगे। धीर-धीर एक दिन का कोर्स पूरा होने लगा। सभी लोग से एक अच्छा व्यवहार बनाते हुए अपनी दोस्ती को कायम रखे।  याद आ रहा है सुबह-सुबह हम सभी लोग स्टेशन के ओवर बृज के रास्ते से नेहरू पार्क पहुँच जाया करते थे। वहाँ सुबह- सुबह का टहलना तथा अन्य व्यायाम  करके अपने -अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान दिया करते थे। कभी कभी साम में भी उसी पार्क में पहुँच कर गुलाबों के बीच में अपनी -अपनी सुनहली यादों में पल भर के लिए खो जाते थे। जब पता चलता था कि अब पार्क का गेट बन्द होने वाला है तो किसी तरह आनन-फानन में अपनी यादों को समेटते हुए और सब्जी मार्केट के रास्ते से भोज्य पदार्थ को लेकर रुम पर पहुँच जाते थे । अपने ही हाथो से। सभी साथी मिलकर भोजन बनाने में लग जाया करते थे। हँसते-बोलते हम सभी लोग अपनी पढाई- लिखाई में लग जाया करते थे।
             इसी बीच हमारे मित्र परिधि के अन्दर एक मित्र सुंदर आभा लिए नई ताजगी नये जोश के साथ प्रवेश करने की कोशिश किये और सफल रहे । बातों और विचारों में शालीनता का भाव लिए शान्त स्वभाव लिए लम्बे कद काठी पतले छरहरे शरीर वाले स्वयं के प्रति उत्तरदायीत्व का भार  सम्भाले हुए प्रवेश किये। ये मित्र हमारे मित्र मंडली में पहले से ही शामिल थे लेकिन घनिष्ठता के साथ अब   शामिल हो गये। देर आये लेकिन दुरुस्त आये। हम सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनकर आये जिनका नाम है मानिक चन्द यादव। गढवा जिला के रमुना प्रखण्ड झारखंड प्रदेश के रहनेवाले हैं। हमारे मित्र मंडली में छठवें स्थान को ग्रहण किए।
              अब हम सभी मित्र मिल-जुलकर अन्त तक मित्रता निभाई और फिर कोर्स पूरा होने के बाद जनवरी-२०११ में परीक्षा देने के बाद जुदा होने लगे । बारी-बारी से सभी लोग निकलते गये। सभी लोगों के आँखों में आशुओ का सैलाब भर गया था। लेकिन यही कुदरत का करिश्मा है कि कभी मिलन भारी है तो कभी बिछुड़न भारी है। दू:ख के साथ हम सभी लोग आशुओं को पोछते हुए दूर होते गये। अपने -अपने घर पहुँच जाते हैं। एकता का मिसाल बन गये थे लेकिन कौन जानता है कब कैसा समय आयेगा। एक-एक करके बिखरते हुए चले गये। फिर भी हम लोगों की दोस्ती आज भी जीवित है उसी प्रकार जिस प्रकार पांचों पान्डव के साथ कृष्ण आये हुए थे। महाभारत का खेल खत्म करके एक-एक करके सब अपने जगह पर चले गये ठीक उसी प्रकार हम पाँच मित्रों के बीच कृष्ण बनकर मानिक चन्द यादव जी आये और महाभारत रूपी बी०एड० के कोर्स को पुरा कर सफलतापूर्वक हम सब अपने -अपने जगह पर चले गये। उस जमाने में शायद दूरभाष की व्यवस्था नहीं थी इसलिए पान्डव सहित कृष्ण बिछुड़ने के बाद अपने विचारों को आदान-प्रदान नहीं कर पाये। लेकिन आज के समय में हम  पान्डव सहित कृष्ण बिछुड़ने के बाद भी दूरभाष के जरिए अभी भी विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है ।हम  कह सकते हैं दोस्ती हो तो दिल से नहीं  तो न हो,दोस्ती के साथ-साथ दोस्ती निभाने की शैलियों की जानकारी होनी चाहिए।
____________________रमेश कुमार सिंह /११-०९-२०१५

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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