tag:blogger.com,1999:blog-61040253386199514032023-11-15T08:37:37.891-08:00यादगार पल रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-38850321851408891902016-01-17T02:28:00.002-08:002016-01-17T02:28:55.807-08:00संस्मरण -: ओ मेरे साथियों •••••<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुझे आज भी ख्याल है कि २००९-१० में सासाराम रेलवे स्टेशन से एक किलो मिटर दूर उत्तर की ओर जा रही सड़क से एक चौड़ी गली अन्दर की तरफ गई है शायद उस गली वाले इलाके को वी०आई०पी० मोहल्ला के नाम से जाना जाता है तथा उसी गली के अन्त में एक आधे अधूरे मकान में दो रुम हैं एक रुम अभी भी अन्दर अधूरा है। एक रुम में बरसात में पानी बहुत ही आसानी से टपक कर हम सभी को भिगोकर यह प्रमाण देता था मेरी नई जवानी में ही बुढापा आ गई है। सहयोग की जरूरत है लेकिन कौन सहयोग करता उस मकान के वारिस होते हुए भी लावारिस की तरह लग रहा था। किरायेदार को अपने रहने से मतलब था और मालिक को सिर्फ पैसा लेने से मतलब था। दोनों अपने अपने जगह पर अडिग थे। खैर ये रही उस जगह की बात जहां हम छ:साथी एक साथ रहते थे।<br />
हम छ: साथी वहाँ डेरा इसलिए रखा था कि उस समय बी०एड० हरि नरायन सिंह इन्सट्युट आॅफ टीचर्स एजुकेशन बैजला सासाराम रोहतास बिहार से बी०एड० कर रहे थे। उसी के दौरान हम छ: साथी (दीपक, चन्दन, दीपक राय,राधेश्याम,मानिक चन्द) कब किस प्रकार धीरे -धीरे एक मित्र परिधि के अन्दर हो जाते हैं पता ही नहीं चला हमारे सभी (पाँचों) साथी पाँच इलाके के रहने वाले थे और सभी साथियों में अलग-अलग विशेषताएँ हैं। जो उस समय झलकते रहे और अपने व्यवहार को सभी शिक्षक गण और छात्रों के बीच दिखाते रहे।<br />
हमें बखूबी याद है जब मैं पहली बार नमाकंन के बाद क्लास रुम में क्लास करने के लिए अपने जगह पर बैठा था।उसी वक्त हम सभी लोग एक दूसरे से अन्जान थे।जान पहचान धिरे-धिरे बना रहे थे। हमारे बीच एक दो रोज बाद ही मेरे बातों से प्रभावित होकर मेरे पहले मित्र राधेश्याम जी मिले उस दिन से अलवेस्टर से छाया हुआ हाल के नीचे वर्मा विल्डिग में अपने शब्दों के जरिए आवाज़ों के माध्यम से बातें होने लगी। हमारे मित्र राधेश्याम जी सकल से सुन्दर लम्बे पतले शरीर वाले चहरे पर बराबर मुस्कान लिए मिलनसार प्रवृत्ति रखने वाले हमारे पहले मित्र बनने की कोशिश किये और बन गये। और दिल से ईमान्दारी पूर्वक पढाई के अन्त तक ही नहीं बल्कि आज भी शालीनता का भाव लिए दूरभाष से बाते करते हैं। ये रहने वाले रोहतास जिला के कोचस प्रखण्ड बिहार के रहनेवाले थे। हमेशा सुमधुर वाणी से भईया शब्द कहकर पुकारते हैं।<br />
इन्हीं के माध्यम से हमारे दूसरे मित्र के रूप में चन्दन कुमार राय जी से मुलाकात हुई गोलमटोल सुन्दर शरीर अन्दर कुट-कुट कर भरा हुआ समाजिक सहयोग का भाव ,परोपकार की भावना लिए हर धड़ी सहयोग हर किसी का करने के लिये तत्परता दिखाने वाले चन्दन जी के पास कभी कभी क्रोध उनके उपर अपना हक जताने लगता था,तो मैं बीच-बीच में रोकने का प्रयास करता रहा और मिलजुल कर चलने की बातें करता रहा। इनके पास अपनी एक बाइक 🚲 थी पिता इनके शिक्षक थे। इनसे परिचय होने के बाद हम तीन साथी हो गये। आपस में एक जगह बैठना ,पढना,लिखना,किताब मैटर आदि का आदान-प्रदान करना इत्यादि सब चलने लगा। मुझसे प्रभावित होकर चन्दन जी मुझे उसी रुम में थोड़ी जगह दी। इस प्रकार हम तीन साथी उस आधे-अधूरे किराये के मकान में रहने लगे ये रोहतास जिला के बिक्रमगंज नटवार के रहने वाले हैं।<br />
तीसरे साथी के रूप में एक दो माह बाद हमारे एक शिक्षक के माध्यम से दीपक स्वर्णकार हम लोगों के बीच में आये जो रहने वाले बोकारो सिटी के गोमिया नामक स्थान से झारखंड प्रदेश के रहने वाले हैं। जो बिलकुल स्वर्ण सी आभा लिए हम लोगों के मित्र मंडली में उपस्थित हुए। और हम लोगों के साथ रहना खाना घूमना फिरना प्रारम्भ हो गया। इनके अन्दर एक खास विशेषताएं रही माहौल को प्रेम मय बनाकर रखने की और बातों के जरिये गोल -गोल घुमाने की प्रवृति रही।<br />
अब हम लोग कुल मिलाकर चार मित्र हो गये। एक ही जगह रहना एक ही जगह खाना एक ही साथ बातें करना विद्यालय जाना-आना हँसीं खुशी से एक दिन बिता रहे थे ।<br />
कुछ ही दिनों बाद चौथेसाथी के रुप में बातों और विचारों के माध्यम से हमारे मित्र मंडली में संख्या बढ़ी। आ गये हमारे बीच में दीपक राय जी ये भी हेल्दी शरीर वाले पूजापाठ में विश्वास रखने वाले अपने आराध्य गुरु के प्रति माला बैठ कर जपने वाले और शान्तिः के साथ -साथ क्रोध को भी पास में रखा करतें थे। जब जैसा जरूरत पड़ता था तब क्रोध का प्रयोग जरूर करते थे। हम लोग के रुम से कुछ दूरी पर रहा करते थे लेकिन थोड़े समय बाद हम लोगों के साथ ही कमरे में रहने लगे। ये बिहार राज्य के जहानाबाद जिला के हैं।<br />
बहुत मौज मस्ती के साथ दिन कट रहा था विद्यालय चल रहा था तबतक इसी बीच हम लोगों का विद्यालय नये मकान में चला गया अलवेस्टर के जगह से अच्छा मकान ,हाल, लाईब्रेरी कार्यालय सब मिल गया । अब हमलोगो के रुम से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां आने -जाने में कठिनाइयाँ तो नहीं लेकिन समय अधिक लगने लगा । <br />
हम सभी लोग विद्यालय या रुम पर एक साथ रहकर मौज मस्ती के साथ रहने लगे। धीर-धीर एक दिन का कोर्स पूरा होने लगा। सभी लोग से एक अच्छा व्यवहार बनाते हुए अपनी दोस्ती को कायम रखे। याद आ रहा है सुबह-सुबह हम सभी लोग स्टेशन के ओवर बृज के रास्ते से नेहरू पार्क पहुँच जाया करते थे। वहाँ सुबह- सुबह का टहलना तथा अन्य व्यायाम करके अपने -अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान दिया करते थे। कभी कभी साम में भी उसी पार्क में पहुँच कर गुलाबों के बीच में अपनी -अपनी सुनहली यादों में पल भर के लिए खो जाते थे। जब पता चलता था कि अब पार्क का गेट बन्द होने वाला है तो किसी तरह आनन-फानन में अपनी यादों को समेटते हुए और सब्जी मार्केट के रास्ते से भोज्य पदार्थ को लेकर रुम पर पहुँच जाते थे । अपने ही हाथो से। सभी साथी मिलकर भोजन बनाने में लग जाया करते थे। हँसते-बोलते हम सभी लोग अपनी पढाई- लिखाई में लग जाया करते थे।<br />
इसी बीच हमारे मित्र परिधि के अन्दर एक मित्र सुंदर आभा लिए नई ताजगी नये जोश के साथ प्रवेश करने की कोशिश किये और सफल रहे । बातों और विचारों में शालीनता का भाव लिए शान्त स्वभाव लिए लम्बे कद काठी पतले छरहरे शरीर वाले स्वयं के प्रति उत्तरदायीत्व का भार सम्भाले हुए प्रवेश किये। ये मित्र हमारे मित्र मंडली में पहले से ही शामिल थे लेकिन घनिष्ठता के साथ अब शामिल हो गये। देर आये लेकिन दुरुस्त आये। हम सभी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनकर आये जिनका नाम है मानिक चन्द यादव। गढवा जिला के रमुना प्रखण्ड झारखंड प्रदेश के रहनेवाले हैं। हमारे मित्र मंडली में छठवें स्थान को ग्रहण किए।<br />
अब हम सभी मित्र मिल-जुलकर अन्त तक मित्रता निभाई और फिर कोर्स पूरा होने के बाद जनवरी-२०११ में परीक्षा देने के बाद जुदा होने लगे । बारी-बारी से सभी लोग निकलते गये। सभी लोगों के आँखों में आशुओ का सैलाब भर गया था। लेकिन यही कुदरत का करिश्मा है कि कभी मिलन भारी है तो कभी बिछुड़न भारी है। दू:ख के साथ हम सभी लोग आशुओं को पोछते हुए दूर होते गये। अपने -अपने घर पहुँच जाते हैं। एकता का मिसाल बन गये थे लेकिन कौन जानता है कब कैसा समय आयेगा। एक-एक करके बिखरते हुए चले गये। फिर भी हम लोगों की दोस्ती आज भी जीवित है उसी प्रकार जिस प्रकार पांचों पान्डव के साथ कृष्ण आये हुए थे। महाभारत का खेल खत्म करके एक-एक करके सब अपने जगह पर चले गये ठीक उसी प्रकार हम पाँच मित्रों के बीच कृष्ण बनकर मानिक चन्द यादव जी आये और महाभारत रूपी बी०एड० के कोर्स को पुरा कर सफलतापूर्वक हम सब अपने -अपने जगह पर चले गये। उस जमाने में शायद दूरभाष की व्यवस्था नहीं थी इसलिए पान्डव सहित कृष्ण बिछुड़ने के बाद अपने विचारों को आदान-प्रदान नहीं कर पाये। लेकिन आज के समय में हम पान्डव सहित कृष्ण बिछुड़ने के बाद भी दूरभाष के जरिए अभी भी विचारों का आदान-प्रदान किया जाता है ।हम कह सकते हैं दोस्ती हो तो दिल से नहीं तो न हो,दोस्ती के साथ-साथ दोस्ती निभाने की शैलियों की जानकारी होनी चाहिए।<br />____________________रमेश कुमार सिंह /११-०९-२०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-89158873484189267182016-01-07T16:54:00.003-08:002016-01-07T16:54:56.034-08:00११० चतुष्पद <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
हद से ज्यादा खुश हैं---- क्या बात है।<br />चेहरे पर भरपूर मुस्कान, लाजवाब है।<br />किस कारण-- खिलखिला उठा चेहरा,<br />मुझे भी जानने की, हृदय से आस है।।<br />१४-१०-२०१५<br />
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जिन्दगी के राह में,अनेकों मोड़ मिलते हैं।<br /> सब पर लोग चलकर~ गुजरना चाहतें हैं।<br /> हर समय बिताने के बाद~~ आखिरी में,<br />एक ही जगह पर जाकर लोग मिलते हैं।। <br />०६-१०-२०१५<br />
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सब कुछ है यहाँ लेकिन क्यों~~विरान सा लगता है।<br />चहल-पहल है यहाँ लेकिन क्यों बेताल सा लगता है।<br />धरातल पर इतनी हरियाली फैलने के बावजूद भी,<br />पहाड़, बादलों का मिलन क्यों बेजुबान सा लगता है।।<br />
२६-०८-२०१५<br />
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हौसला पर ही ~~~~~~मंजिल टीका है।<br />बुलन्दी से ही~~~~~~~ जीवन टीका है। <br />बुलन्दी भरा हौसला ~जिसके पास न हो, <br />उसके जिन्दगी का सफर भी फिका है।।<br />
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मेरे अन्दर हमदर्द को जागृत कर क्यों दूर चली गई।<br />प्यार को अंकुरित कर- दिल में जगह क्यों बना गई।<br />मैं यत्र-तत्र भटकता रहता हूँ तुम्हारे बिन, इस जग में,<br />हमारे महफिल भरी जिन्दगी में एक छवि क्यों दे गई।।<br /> ०१-०७-२०१६<br />
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हर लोग आज यहाँ पर परेशान क्यों हैं।<br />एक दूसरे को आजमाने में हैरान क्यों है।<br />आपस में टकराकर समाप्त हो रहे है,<br />दुनिया में बन गया ऐसा इन्सान क्यों हैं ।<br />
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हमारे अन्दर हैं---- सुन्दर, <br />तो सारा जग हैं---- सुन्दर,<br />सुन्दरता का भण्डार यहाँ,<br />सबके मन में हैं--- सुन्दर।<br />
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हृदय की आवाज़--- जब निकलने लगती है।<br />तो शब्दों के रूप में पन्नों पर छपने लगती है।।<br />किसी की भावना उभरकर सामने आ गई है।<br />न चाहते हुए भी कविता बन निकल गई है।। <br />
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मेरी जिन्दगी का एक-एक लम्हा क्यों बिखरता जा रहा है।<br />जो सपने सजाये थे वो तिनका-तिनका उड़ता जा रहा है।<br />इसे मैं कैसे इकट्ठा करूँ बेहतर जीवन के लिए,<br />इस समस्या ने मेरे उलझन को बढाता जा रहा है।।<br />
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सुखमय यात्रा मैं करते आज तक आया हूँ। <br />दुखमय यात्रा को आज से मैं देख रहा हूँ ।<br />कितनी लम्बी यात्रा होगी कैसे जान पाऊँ,<br />उधेड़बुन में आज मैं पल पल सोच रहा हूँ। <br />
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सुखमय जीवन जा रहा है।<br />दुखमय जीवन आ रहा है।<br />महसूस ऐसा क्यों आज,<br />पल-पल मुझे हो रहा है।। <br />
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देखते-देखते नयनो के जरिए हृदय में---- महल बना लिया।<br />बात करते-करते आवाज़ों के जरिए मुझे दिवाना बना दिया।<br />अब तक तेरी अदाओं के रंग में ऐसा रंगीन हो गया हूँ--- मैं <br />हमेशा के लिए मेरे ख्वाबों-ख्यालों मे स्थायी जगह बना लिया।<br />१२-०५-२०१५<br />
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रह-रह कर मन में क्यों कसक उठ जाती है।<br />मेरे दिल पर कोई दर्द क्यों दस्तक दे जाती है।<br />जितना भी मैं उसे भूलने की कोशिश करता हूँ<br />उतना ही अधिक उदासी मन में छा जाती हैं।।<br />०७-०५-२०१५<br />
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ये दुनिया सिर्फ मतलब की-- -संगी है।<br />काम निकालने के लिए साथ-- देती है।<br />स्वार्थसिद्धि हो जाता इनका पुरा अगर,<br />साथ छोड़ कर रफूचक्कर हो जाती है।<br />
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कैसा रहा हमारे फूलों का खुशबू।<br />कुछ तो बताइए हम भी सुन लूँ।<br />बहुत मेहनत से हमने उगाया था,<br />सोचा मित्रों को समर्पित कर दूँ।<br />०३-०५-२०१५<br />
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मोहब्बत की उम्मीद पे ही जिन्दगी सँवरती है। <br />झुकी - झुकी नजरों में मोहब्बत बसीं रहती है।<br />मोहब्बत में ही सब कुछ बयां हो जाता है यारों<br />इशारे ही सबकुछ है जो लबों पे नहीं आती हैं।।<br />२९-०४-२०१५<br />
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जो सो जायेगा-------- वो खो जायेगा।<br />जीवन मे कभी कुछ नहीं- बन पायेगा।<br />ऐ मेरे प्यारे साथियों सभी से गुजारिश है,<br />किसी भी स्थिति में कभी नहीं सोयेगा।<br />
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अगर हमारा संयोग न------- होता,<br />तो हम फेशबुक पर कहाँ से आते।<br />अगर हम आईडी बनाया न-- होता,<br />आप लोगों से कैसे होती मुलाकातें।।<br />२७-०२-२०१५<br />
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हांथो में छलकता जाम का प्याला होता।<br />आँखों में उल्फत का नजारा होता।<br />तलवारों की जरुरत नही पड़ती--- यहाँ <br />काश नजरों से कत्लेआम हमारा होता।।<br />१८-१२-२०१५<br />
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सब भरा पुरा है यहाँ लेकिन लगता सुनसान क्यों ?<br />हर कार्य कठिन यहाँ पर लगता आसान क्यों ?<br />बच्चे- बुढे-व्यस्क हर उम्र का यहाँ चहल- पहल,<br />फिर भी यहाँ पर लोग एक दूसरे से परेशान क्यों?<br />१८-१२-२०१५<br />
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गजब की एकता देखीं हमने गलत राह पर चलने की।<br />लोग इकठ्ठा हो जाते हैं नियम को ताख पर रखने की।<br />इसमें मनुज का दोष नहीं यह परंपरा रही यहाँ,<br />नीचे से लेकर उपर तक देते सीख गलत करने की।।<br />१८-१२-२०१५<br />
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तुम दूर सही तो क्या हम तुम्हें ही याद करते हैं।<br />तुम मिलो या ना मिलो,मिलने की फरियाद करते हैं।<br />प्यार में मुकद्दर का सिकन्दर कौन बना है आज यहाँ,<br />मैं कल भी प्यार करता था आज भी प्यार करते हैं।।<br />२२-१२/२०१५<br />
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प्रकृति के गोद में, नदी किनारे क्या चाल है।<br />लाल जुता खाकी वर्दी में क्या कदम ताल है।<br />बनें रहे हमेशा इस देश के जांबाज सिपाही,<br />ईमानदारी पास रखना देश का बूरा हाल है।।<br />१८-१२-२०१५<br />
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नदी किनारे खाकी में लड़की खड़ी है।<br />खाकी में दिखने के लिए खुब लड़ी है।<br />जो चाहत रखी थी अपने जिन्दगी में वो,<br />आज उस दहलीज पर वो खुद खड़ी है।।<br />१८-१२-२०१५<br />
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माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद सदा बने रहे।<br />भगवान धनवन्तरी की कृपा सदैव बने रहे।<br />धन धान से परिपूर्ण स्वथ्य चिरायु हो,<br />ढेरों शुभकामनाएं आप सब पर बने रहे।<br />०९-११-२०१५<br />
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निंद आती है सपने आते हैं।<br />याद आती है ख्वाब सजाते है।<br />ख्यालों में तैरते हुए लम्हों को,<br />करवटें बदलते विताये जाते हैं।<br />
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नव किरण बनकर मेरी मित्र परिधि के अन्दर आ जा।<br />कर दें सबका जीवन स्वर्णमय प्रकाश अन्दर फैला जा।<br />यहा अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से साहित्य की दुनिया में ,<br />साहित्यमय कर सर्वत्र अलौकिक ज्ञान दीप जला जा।<br />०५-१२-२०१५<br />
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नव किरणों ने स्वर्ण सी आभा लिए सुप्रभात कह रही है।<br />ठन्ढी हवा शीतलता की छांव लिये सर्वत्र बह रही है।<br />पंछियों का कलरव बच्चों की किलकारी खुशनुमा पल में,<br />स्वर्णमय चादर विछाये स्वर्णिम जीवन में उमंग भर रही है।<br />०२-१२-२०१५<br />
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उठो सबेरा हो गया।<br />देखो चाँद भी सो गया।<br />स्वर्णिम आभा को देखकर,<br />देखो अंधेरा वो गया।<br />०१-१२-२०१५<br />
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लगता है वर्षों से हुई मुलाकात<br />सामने से अब कभी होती नहीं बात।<br />कभी तो आ जायें आमने-सामने,<br />अब ये जुदाई होती नहीं बरदाश्त।<br />२२-११-२०१५<br />
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जन्मदिन की की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ मुबारकबाद हो।<br />आपका आनेवाला भविष्य निरन्तर अग्रसर उज्ज्वलमय हो।<br />हमेशा नेक रास्ते पर चलते हुए जीवन में एक नई उचाई दे,<br />अच्छे इंसान बनकर हमारे बीच में रोशन करें मेरी यही दुआ हो।<br />साली के जन्मदिन पर<br />
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इन जुल्फों को न ऐसे लहराया करो।<br />इन अदाओं को न ऐसे दिखाया करो।<br />इन आँखों के साथ मुस्कान छोड़कर,<br />मुझे इस कदर न तड़पाया करो।।<br />
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बहुत सुंदर आप अपनी रचनाओं को किये जा रहे हैं।<br />सभी रचनाकारों को अच्छी सीख दिये जा रहे हैं।<br />हमारे बीच आपकी प्रतिभा निखरती रहे हमेशा,<br />हम आभार व्यक्त एवं धन्यवाद देते जा रहे हैं।। <br />
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प्राकृतिक छटा निखर रही है।<br />बादलों के नीचे डगर रही है।<br />यह हरा भरा धरती का चादर,<br />कितना सुन्दर लहर रही है।<br />२२-१२-२०१५<br />
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इसी तरह हमेशा मुस्कुराते रहो।<br />लोगों को खुशियाँ सुनाते रहो।<br />अपने में मित्रवत व्यवहार कर,<br />हमेशा आगे कदम बढाते रहो।<br />३०-०७-२०१५<br />
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आपकी याद में खोए हुए हैं।<br />अपने बेड पर सोए हुए हैं।<br />आपसे बाते करते हुए,<br />सपनों को संजोए हुए हैं <br />३०-०७-२०१५<br />
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जय विजय परिवार का अभिनन्दन करता हूँ।<br />सभी रचनाकारों पाठकों का वन्दन करता हूँ।<br />आगे बढाने का श्रेय सिंघल जी को जाता है,<br />मैं हृदय से ऐसे विभूति को नमन करता हूँ।।<br />
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तुम कहाँ हो नहीं मिला कुछ खोज-खबर।<br />मिलने की कोशिश करती तुम रोज-मगर।<br />मालूम नहीं कहाँ हो इस दुनिया में मशगूल <br />गई नही होती तुम दूर,मैं देखता रोज-अगर।।<br />०३-०१-२०१६<br />
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भूली- भटकी चली गईं तुम छोड़ गईं संसार,<br />बिना तुम्हारे लगता जीवन जैसे हो निस्सार,<br />सारे बंधन तोड़ गई हो और गईं मुख मोड़ ,<br />ह्रदय बसी है याद तुम्हारी आँखों में जल-धार !<br />
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<br />मै कभी देखा न तुमने कभी देखा।<br />तो क्यों बनाई याद करने की रेखा।<br />अब दूर -दूर रहना है इस जहाँ में,<br />तो क्यों करें हम यहाँ देखीं-देखा।<br />०३-०१-२०१६<br />
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मैं तुममें जो समझा वो न देख पाया।<br />समझने की कोशिश की न हो पाया।<br />अब राह बदल लो तूँ मेरी जिन्दगी से,<br />चाल बदल लो तूँ मैं खुश न रह पाया।<br />०३-०१-२०१६<br />
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सीमारेखा पर डटे भारतीय वीर जवान।<br />पीछे नहीं वो हटे भले हुए लहू-लुहान।<br />आतंकवादियों से लड़ते रहे तब-तक,<br />जब-तक खुद हो गये नहीं बलिदान।<br />०५-०१-२०१६<br />
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अब तुम मेरी हो गई हो, मेरा अरमान पूरा कर दे।<br />मैं तेरे लिए आया हूँ, तूँ मेरी हर आस पूरा कर दे।<br />हम दोनों मिलकर दुनिया में ऐसा ख्वाब सजायें,<br />मैं तेरे सपने सच करदूँ, तूँ मेरे सपने सच करदे।<br />06-01-2016<br />
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जिन्दगी का हर लम्हा टूट कर बिखर गया।<br />किसी का साथ देकर मुझसे रूठ कर निकल गया<br />कुछ ऐसा करो जतन कि मैं तुम्हारा हो जाऊँ <br />तुम्हारे साथ रहकर मैं इस जिन्दगी से उबर गया।<br /> ०५-०१-२०१६<br />
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यादों के झरोखों में मिलकर तैरते रहेंगे,<br />यादों रूपी दरिया में डुबे तो खो जायेंगे,।<br />मिलने की कोशिश करते रहना नहीं तो,<br />एक दूजे को सदा के लिये भूल जायेंगे।<br />
<br />अगर सभी कोशिश हमेशा करते रहेंगे।<br />एकदिन जरूर आपस में मिल जायेंगे।<br />उसके बाद खुशियाँ एक दूजे में बाटेंगे,<br />फिर हमेशा की तरह बात करने लगेंगे<br />
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जीवन की ज्योति जलाते रहें,<br />प्रकाश की किरण फैलाते रहें।<br />जो हैं अभी भी अंधेरों में डूबे ,<br />उनके यहाँ प्रकाश पहुंचाते रहें।।<br />
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आदरणीय मित्रों के प्रति समर्पित ---<br />
मेरे आदरणीय मित्रो पोस्ट पर भी आया करें कभी कभी।<br />मेरी रचनाओं को पढकर कमियां बताया करें कभी कभी।<br />मैं उम्मीद ही नहीं बल्कि इस काम केलिए आशा रखता हूँ।<br />सुझाव सलाह रूपी सहयोग हमें दिया करें कभी -कभी।<br />
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आप अपने लेखनी को मत छोड़ियेगा।<br />हौसले के उड़ान को नहीं तोड़ियेगा।<br />यह मिला हुआ गुण ईश्वरीय वरदान है ,<br />इस दुनिया में लावारिस मत छोड़ियेगा।<br />
पढने की बात रही सो पढा कीजिएगा,<br />पढने के जरिये ही लेखन कीजिएगा।<br />ज्ञानोदय में इसका भी अहम स्थान है,<br />जिन्दगी के हिस्से में जगह दीजिएगा<br />
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आपस में आप सभी मित्र जन होली मनाई,<br />प्रेम रूपी दिलभरे रंगों को एक में मिलाई,<br />यही मैं ईश्वर से कर बद्ध प्रार्थना करता हूँ,<br />सभी मित्र अपने-अपने घर खुशियाँ मनाई<br />
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<br />पैग-पे- पैग हम तो चढाते रहे।<br />जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।<br />जैसे जन्नत में हूँ ऐसा हुआ असर,<br />आनंद, कुछ समय गुदगुदाते रहे।<br />
पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।<br />दोनों मिलकर नशा भिगाते रहे।<br />बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।<br />कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।<br />
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रह-रह कर मन में क्यों कसक उठ जाती है<br />मेरे दिल पर दर्द की क्यों दस्तक दे जाती है<br />जितनी भी कोशिश करता हूँ उसे भूलने की<br />उतनी ही अधिक उदासी मन में छा जाती है<br />
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<br />घुमड़-घुमड़ कर बादल आया,<br />चारों तरफ पानी बरसाया।<br />पानी की बौछारें करके,<br />किसान भाइयों को तड़पाया।<br />
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अपने आपके लिए.... बहुत से लोग जीते हैं।<br />कभी एक दूजे के लिए भी.. लोग जी लेते हैं।<br />ऐसा करें, लोग दिल में अच्छा जगह देते रहे,<br />अपने से ज्यादा दिलदार दूसरे लोग ही देते हैं।<br />
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सुनो साथियों हमसे दिल लगाकर तो जाना,<br />एक पल हँसीं ख्वाब में बिताकर तो जाना।<br />मेरी इन अदाओं को~~ एक बार तो देखो,<br />आगोश बाहों का क्षण भर लेकर तो जाना।<br />०७-०७-२०१५<br />
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अब तुम्हारे साथ रहने को दिल करता है,<br />साथ में रहकर हँसने को दिल करता है,<br />जब दूर रहना था हम दोनों को यहां पर,<br />तो हम एक दूसरे के साथ क्यों रहता है<br />२४-०२-२०१५<br />
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काले-काले बालों को लहराने से, नभ में काली घटा छाने लगी।<br />ओठों पर मुस्कुराहट लाने से~~चेहरे पर हरियाली छाने लगी।<br />ये जुल्फे, ये आँखें, इस मधुर-मधुर मुस्कुराहट के संमागम से,<br />ऐसा कर गई, मुझ पर जादू, कि ख्वाबों-ख्यालों में आने लगी।<br />
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<br />हर लोग आज यहाँ पर परेशान क्यों हैं<br />एक दूसरे को आजमाने में हैरान क्यों है <br />आपस में टकराकर समाप्त हो रहे है <br />दुनिया में बन गया ऐसा इन्सान क्यों हैं <br /><br />
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ये दोस्ती का कितना खुशनुमा पल है<br />रिमझिम से, मिलकर कितना तर हैं<br />हमेशा बने रहे आपका सुनहरा पल<br />हमारी हर क्षण दुआ आपके उपर है <br />
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कहीं है गर्मी कहीं है धूप कही आग की लपट चल रही है।<br />कहीं पशु, छाँव एवं कहीं मछलियाँ पानी बिन तरस रहीं हैं। <br />सूर्य कि किरणों ने इतना आग की ज्वाला उगल रही है। <br />कि मानव जाती ने भी शीतलता की तलाश कर रहीं हैं।। <br />११-०६-२०१५<br />
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<br />पर्यावरण का सुरक्षा करना हमारा धर्म है<br />वृक्ष और पौधा लगाना यही हमारा कर्म है<br />इससे वायुमंडल का संतुलन हो जाता है <br />पृथ्वी को हरा भरा करना यही सत्कर्म है <br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~<br />दुनिया वालों से हमारा एक यही पुकार है<br />बच्चों की भान्ति वृक्षों का सत्कार करना है <br />वृक्षों से धरा को सजाने और सँवारने के लिए,<br />वृक्षारोपण के लिए सभी को प्रेरणा देना है<br />
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नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।<br />हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।<br />हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,<br />ऐसा हुआ मिलन कि हर ख्यालों में आ गई।<br /> /०७-०६-२०१५<br />
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<br />जिन्दगी बहुत हसीन है हँस- हँस के जीना यारों ।<br />दुनिया बहुत लम्बी-चौड़ी है सबको हँसाना यारों।<br />अपने तरफ से सबका पूर्ण सहयोग करना यारों।<br />किसी को दर्द की दुनिया मे पहुचाना नही यारों ।<br />
<br />नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।<br />हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।<br />हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,<br />ऐसा हुआ मिलन कि, हर ख्यालों में आ गई।<br />०७-०६-२०१५<br />
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अरूणोदय के समय में,सुनहरे तीर बरसाते हुअे।<br />किरण में अन्तर्निहित हुए,विखरने लगा धरातल पे।<br />जाग गई सभी वनस्पतियां ,जाग गई सब मानवता,<br />चहचहाने लगी चिड़ियाँ ,लिए भाव कोमल विखेरते।<br />२४-०२-२०१५<br />
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आपकी यात्रा मगलमय हो।<br />हमेशा आप कल्याणमय हो<br />बढते रहे मंजिल की तरफ,<br />जीवन आपका सुखमय हो।।<br />
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मुझे तुम्हारी याद क्यों~ सताया करती है।<br />बिच-बिच में क्यों~~~ तड़पाया करती है।।<br />आना है तो आ जाओ मेरे दिल के अन्दर,<br />बातें करके हमेशा क्यों फसाया करती हैं।।<br />
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इस धरती पर बोझ बढा है,<br />माँ धरती का कष्ट बढा है,<br />आओ मिलकर करें पूजा,<br />कभी न इससे कद घटा है।<br />
•••••••••••••••••<br /><br />आपके लेखनी में है दम,<br />चार चाँद लगाते हरदम,<br />शब्दों को चुन-चुन करके,<br />दिखा देते हैं अपना दम।<br />
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आपकी नज़रो ने समझा प्यार के काबिल मुझे,<br />मिल गयी मंज़िल------- आपकी नजरों से मुझे,<br />इसलिए आपको ---आभार व्यक्त करता हूँ मैं,<br />आपकी धड़कन की आवाज़--- कबूल है मुझे।<br />
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<br />काले-काले बालों को लहराने से, नभ में काली घटा छाने लगी।<br />ओठों पर मुस्कुराहट लाने से~~चेहरे पर हरियाली छाने लगी।<br />ये जुल्फे, ये आँखें, इस मधुर-मधुर मुस्कुराहट के संमागम से,<br />ऐसा कर गई, मुझ पर जादू, कि ख्वाबों-ख्यालों में आने लगी।<br />
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अंधेरी रातों में, लौह की ज्योति जलाये हुए हैं<br />आपके अगमन में, पलकों को उठाये हुए हैं <br />मेरे इन्तजार की घड़िया, कब समाप्त होगी <br />आने की चाह में पलक पावड़े बिछाये हुए हैं।।<br />१९-०८-२०१५<br />
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बादलों का, जब आपस में, होता है समागम।<br />घटा-घनघोर बीच आपस में होते हैं हृदयंगम।<br />टपकाते हैं खुशी के अश्रुपात हमारे आँगन मे,<br />सर्वत्र खुशियाँ बिखेरने में भूल जाते सारागम।।<br />२०-०८-२०१५<br />
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प्यार करने वाले बड़े ही बदनसीब होते हैं।<br />ऐसे ही बीच राहों में भटकते छुट जाते हैं।<br />खुदा के सिवाय उनका कोई सहारा नहीं है,<br />इस दुनिया में आकर वो पागल कहलाते हैं।<br />•••••••••••••••••••••••••••••<br />
आपकी याद में~~ खोए हुए हैं।<br />अपने बेड पर~~~ सोये हुए हैं। <br />आपसे बातें~~~~~ करते हुए,<br />अपने सपनों को~संजोये हुए हैं।<br />३०-०७-२०१५<br />
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जागो हमारे शिक्षक भाइयों।<br />आँखें खोलो हमारे भाइयों।<br />भविष्य अब खराब हो रहा है,<br />कोर्ट का द्वार देखिए भाइयों।<br /> (शिक्षक हित में जारी)<br />
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हर किसी को साथ में लेकर चलना काम मेरा यही है।<br />पीछे मुड़कर देखना नहीं ------जज्बात मेरा यही है। <br />सबको साथ लेकर चलना---- हर समय प्रयासरत हूँ,<br />हर परिस्थितियों में सहयोग करना, काम मेरा यही है। <br />
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भोग लिप्सा आज भी~~~ हर जगह चल रही है।<br />नर की भावना असहाय~~हर जगह बह रही है।<br />अब तक सुशीतल हो सका न~~~~पुरा संसार,<br />अमृत की बारिश धरा पर हर जगह पड़ रही है।<br />०७-०८-२०१५<br />
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खत्म नहीं हुआ अभी मोहब्बत का फंसाना।<br />अभी संयोग पुरा हुआ, वियोग का हैं आना।<br />०९-०८-२०१५<br />
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प्रेम में रंजीत कर जीवन प्रेमयुक्त कर दो।<br />प्रेम भरी दुनिया में मुझे~~ प्रेमी बना दो।<br />स्नेह के बगीचे में~~~~~~ फूल लगाकर<br />सभी के अन्दर~ प्रेम रूपी फूल खिला दो।<br />२५-०८-२०१५<br />
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<br />शिक्षकों का जहाँ हुआ- अपमान।<br />पनपने लगे चोर, डाकू, बेईमान ।<br />यहाँ बिहार का विकास कैसे होगा,<br />जब शिक्षक खोने लगे-- सम्मान।।<br />
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हद से ज्यादा खुश हैं---- क्या बात है।<br />चेहरे पर भरपूर मुस्कान, लाजवाब है।<br />किस कारण-- खिलखिला उठा चेहरा,<br />मुझे भी जानने की, हृदय से आस है।।<br />१४-१०-२०१५<br /><br />••••••••••••••••••<br />
आँख में भरी है~~~~ मस्ती ।<br />ओठ पर हँसीं है~~छलकती ।<br />कहाँ से खुशबू की खुशबूदार,<br />खुशबू है~~~~~~ महकती।।<br />
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ये काले-काले------- बालों के बीच में,<br />कोई कली------------ खिल चुकी है।<br />हँसते--- मुस्कुराते--- चेहरे के बीच में,<br />ये अधर गुलाब की पंखुड़ि बन चुकी है। <br />१४-१०-२०१५<br />
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इसी तरह हमेशा चेहरे पर रहे~~~ मुस्कान।<br /> जीवन के सफर में छुते रहे~~~~ आसमान ।<br /> कभी भी आपके जीवन में आयें न रुसवाईयां,<br />दामपत्य जीवन में पुरा होते रहे~~~ अरमान।<br />०८-१०-२०१५<br />
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जिन्दगी के राह में,अनेकों मोड़ मिलते हैं।<br />सब पर लोग चलकर~ गुजरना चाहतें हैं।<br />हर समय बिताने के बाद~~ आखिरी में,<br />एक ही जगह पर जाकर लोग मिलते हैं।। <br />०६-१०-२०१५<br />
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कहाँ छोड़कर~वो चली।<br />खिली मिली थी वो कली।<br />हँसीं देकर मेरे हृदय में,<br />किस पथ पर~ वो चली।।<br /> ०५-१०-२०१५<br />
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भाई बहन का प्यार~ आज है राखी का त्यौहार।<br />आज भाई अपने बहन को खूब सारा देता प्यार।<br />बहन ने भाई की कलाई में~ धागा को बाधकर,<br />एक दूसरे के रक्षा के लिये करते हैं~ व्यवहार।।<br />२९-०८-२०१५<br />
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नहीं मतलब है हमें किसी सरकार से।<br />अगर मतलब है तो सिर्फ़ अपने अधिकार से।<br />कोशिश करते रहेंगे हमेशा मरते दम तक,<br />लड़ना ही मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।<br />०५-११-२०१५<br />
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सौन्दर्य को देखकर किसी के हृदय पर भाव उमड़ी होगी।<br />हृदय के रास्ते मानसिक पटल से कोई शब्द गुजरी होगी।<br />किसी रचनाकार के निरन्तर प्रयास करने के--- पश्चात् ही,<br />शब्दों के जरिए वाक्य बनाने के लिए चाहत निकली होगी।<br />०१-१२-२०१५<br />
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तुम्हारी आहट को सुनकर---- गुनगुनाया।<br />तुम्हारी आवाज़ को परखकर- मुस्कुराया।<br />हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,<br />लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।<br />०१-१२-२०१५<br />
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मैं दुखी हूँ इस----- जहां से।<br />करता है मन चल दूँ यहाँ से।<br />इस दुनिया में नहीं है- रहना,<br />फंस गया आ के मैं कहाँ से।<br />
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धुप न रही----- छांव न रहा।<br />गम न रही----- याद न रहा।<br />वो चलती रही, मै चलता रहा।<br />वो आती रही---मैं जाता रहा।<br />२४-१०-२०१५<br />
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कहाँ छोड़कर~~~वो चली।<br />खिली मिली थी~~ वो कली।<br />हँसीं देकर मेरे~~~हृदय में,<br />किस पथ पर~~~ वो चली।।<br /> ०५-१०-२०१५<br />
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<br />तेरा यहा पर ठौर ठिकाना--- तू कुछ भी कर सकता है।<br />भले ही इसके लिए- तू -भ्रष्ट- पथ पर चल सकता है।<br />नीचता पर उतर सकता है स्वार्थ-सिद्ध-पूर्ण करने के लिए, <br />मिट्टी-पलीद हो जाये भली लेकिन पीछे नही हट सकता है।<br />२२-११-२०१५<br />
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जब बन-सवँर-कर निकलती थी वो।<br />मेरे दिल -जिगर पर गुजरती थी वो।<br />मेरे अंदर ऐसा भाव जागृत कर गई, <br />हरदम हृदय-तल पर उमड़ती थी वो।<br />२३-११-२०१५<br />
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सौन्दर्य को देखकर किसी के हृदय पर भाव उमड़ी होगी।<br />हृदय के रास्ते मानसिक पटल से कोई शब्द- गुजरी होगी।<br />किसी रचनाकार के निरन्तर प्रयास करने के---- पश्चात् ही,<br />शब्दों के जरिए वाक्य बनाने के लिए चाहत निकली होगी।<br />०१-१२-२०१५<br />
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तुम्हारी आहट को सुनकर गुनगुनाया।<br />तुम्हारी आवाज़ को परखकर मुस्कुराया।<br />हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,<br />लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।<br />०१-१२-२०१५<br />
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तुम कहाँ गई थी माँ~~मैं कबसे भूखी।<br />दाना चुग कर लाई है~मैं कबसे दुखी ।<br />मुझे भी चलना फिरना अब सिखला दो,<br />गगन में पंख फैलाना है, यह मेरी रुचि।<br />१३-११-२०१५<br />
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रात के अंधेरे में तेरी-- परछाइयाँ दिखती हैं।<br />यादों के दायरे में तेरी अच्छाइयाँ दिखती हैं। <br />मेरे ख्वाबों को हकीकत में- कर दो तब्दील, <br />यादों में हर वक्त तेरी अंगड़ाइयाँ दिखती हैं।<br />१७-११-२०१५<br />
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एक झलक दिखला दो कहाँ खो गई हो।<br />रोज ख्यालों में आती हो कहाँ सो गई हो।<br />तुम्हारे इन्तजार में पलक पावड़े बिछाए है,<br />महसूस होता है जैसे कोई बात हो गई हो।<br />१८-११-२०१५<br />
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इस दुनिया में बहुत दूर हो तुम।<br />मेरे लिए बहुत नजदीक हो तुम।<br />यादों में हर वक्त होती मुलाकातें,<br />हकीकत में बहुत करीब हो तुम।<br />१८-११-२०१५<br />
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ज्ञान की इस दुनिया में किताबों का महल हो।<br />हर वक्त वहाँ पर अच्छे ज्ञानियों का टहल हो।<br />शिक्षा प्राप्त करने का एक बन जाय गुरुकुल,<br />भविष्य सुंदर बनाने वाले बच्चों का पहल हो।।<br />१८-११-२०१५<br />
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मतलब नहीं हमको किसी सरकार से।<br />हमको मतलब है बस अपने अधिकार से।<br />कोशिश करेंगे हम मरते दम तक सदा, <br />जन्म सिद्ध अधिकार को छीनेंगे सरकार से<br />
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तुम्हारी आहट को सुनकर--- गुनगुनाया।<br />तुम्हारी आवाज़ को परखकर मुस्कुराया।<br />हर अदाओं को रखने की कोशिश किया मैं,<br />लेकिन हो बहुत दूर यह सुनकर मुरझाया।<br />०१-१२-२०१५<br />
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यादों में इस तरह मुझे सुलगता छोड़ गया।<br />तनहाईयां देकर- मुझे उबलता छोड़ गया।<br />क्या करें ख्यालों में-- परछाइयाँ दिखती है, <br />दिल-जिगर पर प्यार, उफनता छोड़ गया।।<br />१२-१२-२०१५<br />
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सर्दीयों के सुबह में----कुंहरा छाने लगता है।<br />धुन्ध बनकर, धरातल पर---- आने लगता है।<br />घास के शिर्ष पर चमकता, मोतियों की तरह,<br />सूर्य की रोशनी आते ही पुन: जाने लगता है।।<br />१५-१२-२०१५<br />
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गगन में चाँद- तारें हैं।<br />रोशनी में चमन सारे हैं। <br />खुशियों का अम्बार है,<br />यहां सभी प्राणि न्यारे हैं ।।<br />१५-१२-२०१५<br />
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यही होता है आज के प्यार में।<br /> यही होता है प्यार के खुमार में।<br /> सोच-सोच कर लोग दर्द पीते हैं,<br />प्यार के अन्त-अन्जाम को संसार में।।<br />१५-१२-२०१५<br />
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नदी की धार बलखाती हुई। <br />बीच में नाव डगमगाती हुई।<br />किनारों से करेगी मुलाकात,<br />लहरों के साथ लहराती हुई।।<br />१६-१२- 2०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-26242909787887671332015-06-13T22:20:00.002-07:002015-06-13T22:20:54.465-07:00हाँ तुम!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3>
हाँ तुम!!<br />मुझसे प्रेम करो।<br />जैसे मैं तुमसे करता हूँ।<br />जैसे मछलियाँ पानी से करती हैं,<br />उसके बिना एक पल नहीं रह सकती।<br />जैसे हृदय हवाओं से करती है<br />हवा बिना हृदय गति रूक जाती है</h3>
<h3>
हाँ तुम !!<br />मुझसे प्रेम करो।<br />चाहे मुझको प्यास के पहाड़ों पर लिटा दो।<br />जहाँ एक झरने की तरह तड़पता रहूँ।<br />चाहे सूर्य की किरणों में जलने दो,<br />ताकि तुम उस सूर्य की तेज लपट में <br />मुझे दिखाई देती रहो।</h3>
<h3>
हाँ तुम !!<br />मुझसे प्रेम करो।<br />उस उजाला की तरह।<br />जो मीठी -मीठी सुबह में आकर ,<br />सबको मिठास देती है।<br />उस चाँदनी की तरह,<br />जो बिन बताये रातों में आकर,<br />शीतलता प्रदान करती है।</h3>
<h3>
हाँ तुम !!<br />मुझसे प्रेम करो।<br />उस कोयल की कुक की तरह,<br />जो कानों में सुरीली आवाज़ देकर<br />मन को शांत करती है।<br />उस मोर-मोरनी की तरह<br />जो अपनी सुन्दरता को दिखाकर<br />मन को मोहिनी बना देती है।<br />@रमेश कुमार सिंह<br /><a href="http://shabdanagari.in/website/article/हाँतुमकविता-6109">http://shabdanagari.in/website/article/हाँतुमकविता-6109</a></h3>
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-10771544076899962012015-06-13T07:32:00.002-07:002015-06-13T07:32:40.322-07:00मुक्तक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3>
<br />~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~</h3>
<h3>
नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई।<br /> हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई।<br /> हर मोड़ पर खोजने लगी तुम्हें मेरी आँखें,<br />ऐसा हुआ मिलन कि हर ख्यालों में आ गई।</h3>
<h3>
@रमेश कुमार सिंह /०७-०६-२०१५</h3>
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-71390357580681692042015-06-13T07:18:00.004-07:002015-06-13T07:18:48.804-07:00हाइकु<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2>
खूबसूरत,<br />मनमोहक अदा,<br />झुकी नज़र,<br /> @रमेश कुमार सिंह</h2>
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-9755446431339360152015-06-13T07:14:00.000-07:002015-06-13T07:14:11.588-07:00नहीं करते ..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
साथी छूटे भी तो भूला नहीं करते<br /> वक्त की नजाकत से छोड़ा नहीं करते<br /> जिसकी आवाज में नम्रता और मिठास हो<br /> ऐसी तस्वीर को दिल से हटाया नहीं करते।<br />
<br /><br />
जीने का सहारा मिलता है थोड़ा- थोड़ा,<br />यूँ ही चले जाने वालों का दिल तोड़ा नहीं करते<br /> जो सीधे अपनी गति में बढते है उसे बढने दो<br /> ऐसे लोगों का कभी रूख मोड़ा नहीं करते।<br />
<a href="mailto:——@रमेश">——@रमेश</a> कुमार सिंह</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-86418519239980670362015-06-13T07:08:00.000-07:002015-06-13T07:08:15.899-07:00उम्मीद (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं जब कभी -कभी कमरे में जाकर,<br />शान्तिः जहां पर होता है,<br />चुपके से अपनी लिखी हुई पुराना कागज पढता हूँ<br /> मेरे जीवन का कुछ विवरण अक्षरों में अंकित है<br /> वह एक तरह का पुराना प्रेम-पत्र है<br /> जो लिखकर, रखे थे देने के लिए किसी को,<br />जिसे पाने वाला काफी दूर चला गया है।<br /> मिलने की कोई उम्मीद नहीं<br /> फिर भी आश लगाये हुए हैं<br /> इसी वजह से उसे कभी -कभी कोने में जाकर,<br />एकांत जहा पर होता है ।<br /> उस पन्ने को दोहराया करते हैं।<br />@रमेश कुमार सिंह</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-27792295297032099352015-06-13T06:47:00.002-07:002015-06-13T06:50:37.714-07:00तुम...(कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कहाँ रह रही हो तुम मुझे अकेला छोड़कर<br />
दुनिया की महफिल में मुझे तन्हा छोड़कर<br />
मुसाफिरों की तरह यहाँ चक्कर काटता हूँ<br />
मना लेता मन को,आने की आहट सुनकर<br />
<br /><br />
रह जाता है मेरा दिल देखने को मचलकर<br />
झलक न दिखे तो रह जाता है मन तरसकर<br />
अगर तुम आखों से ओझल हो जाती हो तो,<br />
हृदय के अन्दर रह जाता है दिल तड़पकर<br />
<br /><br />
अगर सृजन कर जाती प्रेम-प्रस्फुटित कर<br />
सृजन-सृजित मधुर-मिलन संगीनी बनकर<br />
हर लो मन की तपन फूलों से सुसज्जित कर<br />
इतना ध्यानकर मुझमें प्रेम की धारा बहाकर<br />
@रमेश कुमार सिंह<br />
**************</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-34464854104266232732015-06-08T02:35:00.002-07:002015-06-08T02:35:43.395-07:00तनहाईयां<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जिन्दगी मे रह-रह कर तनहाईया मिलती हैं <br />हर मोड़ पर ठहर कर रूसवाईया मिलती हैं<br />न जाने कब तक ये मंजर चलता रहेगा यारों <br />इस कठिन डगर पर कठिनाइयाँ मिलती हैं<br />
सफर में उसकी यादों की पंक्तियां मिलती हैं<br />जिसे पन्नों में बिखेरने की शक्तियां मिलती हैं<br />शब्दों को लिख कर बिताया करता हूँ यारों <br />कभी पन्नों पर उभरकर झाँकिया मिलती है <br />
झाँकिया में उसकी धुधलीसी तस्वीर मिलती है <br />आपस में बिताये लम्हों की लकीर मिलती हैं <br />इन्हीं लकीरों को मैं जोड़ -जोड़ कर यारों <br />तैयार करता हूँ तो एक बड़ी जंजीर मिलती है<br />
वो दूर जाने के बाद यादों केरूप में मिलती हैं <br />कभी-कभी वो आवाज़ों के रूप में मिलती है <br />ये आवाज़ जब दिल के अन्दर गुँजता हैं यारों <br />तो ख्यालों और सपनों में बार-बार मिलती है।<br />
जब उस समय हमसे वो बारम्बार मिलती थी <br />लगता था कोई कली में फुल खिल रही थी <br />उस अ को मैं खिलखिलाता देखकर यारों<br />मेरे हृदय में खुशियों की लहर उठ जाती थी <br /><a href="mailto:------@रमेश">------@रमेश</a> कुमार सिंह २३-०५-२०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-29659503498811167352015-06-02T01:04:00.001-07:002015-06-02T01:04:12.001-07:00तुम्हारे हर सवाल ....(कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तुम्हारे हर सवाल मेरे दिल के अन्दर उलफत मचाता रहेगा।<br />न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा<br />तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं,<br />जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा।<br />
तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा।<br />तुम्हारे काले-काले घुघराले बाल घटा के जैसे बिखरता रहेगा।<br />मेरे उपर तुम्हारी आखों का नशा इस तरह चढता चला गया,<br />कि रोक नही पाया अपनेआपको मैं नशिला बनता चला गया।<br /> @रमेश कुमार सिंह /१३-०५-२०१५<br />*</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-70208084246139785592015-05-21T04:21:00.002-07:002015-05-21T04:21:51.597-07:00मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं ••! (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं भी अन्जान था वो भी अन्जान थी<br />जिन्दगी के सफर में एक पहचान थी <br />दोनों के नयन जब आपस में मिले <br />दिल में हलचल हुई मन सजल हो उठे <br />तब बातों का सिलसिला शुरू हो गए <br />वो कुछ कहने लगी मैं कुछ कहने लगा<br />बातों के दरमियान प्यार पनपने लगा <br />क्षण-प्रतिक्षण एक दूसरे में घुलने लगे <br />खुशियाँ मिली जैसे फुल खिलने लगे <br />एक सुहानी डगर का निर्माण हुआ<br />जिस पर हम दोनो सफर करने लगे<br />मौज-मस्ती की दुनिया में हम बढ चले<br />इस दुनिया से कुछ लोग अन्जान थे<br />उनको ऐसा लगा हम गलत हो गये<br />इस मोहब्बत पर उनकी नजर लग गई <br />हुआ वही जो, वे लोग चाहने लगे <br />जिवन मे एक ऐसा तूफान आ गया<br />न चाहते हुए भी दिल विछड़ने लगा <br />वो दूर होती गई मैं दूर होता गया<br />पल-भर मिलने को दिल तरसता रहा<br />जब मोबाइल का सिग्नल जुड़ गया<br />नम्बर का आदान- प्रदान हो गया <br />कुछ दिनों तक आवाज़ कान में आती रही<br />एक दिन बातों ही बातों में तकझक हुई<br />कुछ दिनों तक आवाज़ बन्द हो गई<br />मै मैसेज के जरिए धन्यवाद देता रहा<br />अन्ततः मैसेज का उसे कुछ असर हुआ <br />फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया<br />दोनों एक दूसरे को देखने के लिए<br />वो भी तड़पती वहाँ मैं तड़पता यहाँ<br />वो भी मजबूर वहाँ मैं मजबूर यहाँ <br />दोनो मिलने की तरकीब बनाते रहे<br />लेकिन मिलने की कोशिश नाकाम रही<br />फिर भी भविष्य में आस लगाये हुए हैं <br />इस उम्मीद से प्यार को बनाए हुए है<br />मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं <br /><a href="mailto:---@रमेश">---@रमेश</a> कुमार सिंह</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-64254029333465390612015-05-19T02:04:00.000-07:002015-05-19T02:04:22.252-07:00मैं दुखी हूँ...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं दुखी हूँ -<br />अपने आप से नहीं, <br />इस समाज से,<br />पुरे समाज से नही,<br />समाज में बिखरी हुई,<br />विसंगतियों से।<br />जो विश्वास के आड़तले,<br />खड़ा होकर पुरा करते हैं,<br />स्वर्थसिद्धि।<br />
मैं दुखी हूँ उनसे -<br />जो जनता को धोखे में रखकर,<br />अपने को नतृत्वकर्ता कहते है।<br />सहारा लेते हैं -<br />झूठे वादे, झूठे सपने,<br />झूठे शान-शौकत का।<br />इन्हीं को हथियार बनाकर,<br />जनता को करते हैं गुमराह।<br />इसी में जनता बन जाती है मोहरा।<br />
मैं दुखी हूँ उनसे -<br />चलने लगते हैं,<br />उन्हीं के रास्ते पर,<br />मान लेते हैं उनको भगवान,<br />सौप देते हैं उनको इन्द्रासन,<br />नहीं पता है उनके अन्दर,<br />घर बनाये बैठा है,<br />शैतान।<br />
मैं दुखी हूँ उनसे -<br />जो करते हैं,<br />जनता से विश्वासघात,<br />समाज को बनाते हैं- दागदार,<br />कुप्रवृत्ति को जन्म देते हैं,<br />असमाजिकतत्व को को जन्म देते हैं।<br />
मैं दुखी हूँ उनसे -<br />ऐसे ही नेतृत्वकर्ता से<br />ऐसे ही सन्तुष्टीकर्ता से <br />ऐसे ही समाजिकर्ता से।<br /><a href="mailto:-----@रमेश">-----@रमेश</a> कुमार सिंह<br />-----१०-०४-२०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-78645510012492978592015-05-17T22:46:00.000-07:002015-05-17T22:46:08.347-07:00मेरी जिंदगी का एक लम्हा ....!! (संस्मरण)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपने गाँव से लेकर बनारस तक खुशी पूर्वक शिक्षा लेकर आनन्द पूर्वक जिवन व्यतीत कर रहे थे तभी एक तुफान आया जो हमारी जीवन के बरबादी का शुरूआत लेकर। एक फूल की तरह हमारी जिन्दगी सवंर ही रही थी कि बारिश के साथ आया तूफान फूल के पंखुड़ियों को झड़ा दिया बस बाकी रह गया वो पत्तियां और टहनिया जिसके जरिए जीना है ।इसी बिच आशा की किरण जगी, जिसके सहारे मैं आगे बढ सकता था वो शिक्षण का आधार था। नहीं पता था इस आशा की किरण में कहीं निराशा भरी दुनिया कि भी शुरूवात होती है यही आधार ने एक तरफ जीने की कला सीखाई वही दूसरी तरफ संघर्ष करने की या समस्याओं से निपटने की राह दिखाई।<br /> उसी आशा की किरण के सहारे मैं आगे बढ सकता था । तभी इस पतझड़ रूपी दुनिया में कोई बारिश की बुन्दे टपकाकर ताजा करने की कोशिश की और उसी के सहारे यह पतझड़ धिरे-धिरे हरा-भरा होकर लहलहाने लगा और खुशी के मारे झुम उठा इतना झुम उठा कि वह भूल गया कि पतझड़ की प्रक्रिया अपने समय पर निरन्तर चलते रहती है और इसी के साथ वो धिरे-धिरे आँखों के रास्ते दिल में उतर गई।बस सिलसिला शुरू हुआ एक सुहाना पल का पता नहीं था इस सुहाने पल में छिपी हुई गम की बदलीं है जो छायेगी तो छाये ही रह जायेगी ।<br />@रमेश कुमार सिंह ♌,०८-०२-२०१३<br /><a href="http://shabdanagari.in/website/article/मेरेजिन्दगीकाएकलम्हासंस्मरण">http://shabdanagari.in/website/article/मेरेजिन्दगीकाएकलम्हासंस्मरण</a></div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-19388313310209604722015-04-27T20:56:00.003-07:002015-04-27T23:51:47.466-07:00मैं बहुत उदास हूँ •••!(कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
क्या अब मेरे,<br />
सुख भरे दिन नहीं लौटेगें।<br />
क्या अब मेरे कर्ण ,<br />
उस ध्वनि को नहीं सुन पायेगें<br />
क्य अब मेरे हँसीं,<br />
उस हँसीं में नहीं मिल पायेगें।<br />
क्या अब कोई,<br />
मुझसे यह नही कहेगा-<br />
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,<br />
मैं भी तेरे साथ में हूँ।<br />
<br /><br />
यदि मूझमे यह प्रवृत्ति अनवरत है।<br />
तो इसलिए कि-<br />
हो सकता है कोई मेरे जैसा-<br />
उदास, मनमारे हुए।<br />
आने वाले कल में आये।<br />
और मेरे इस उदास भरे जिन्दगी में,<br />
कोई संगीत सुनाकर,<br />
हो सकता है दीप जलाये।<br />
और दुबारा यही बात कहे-<br />
ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो,<br />
मैं भी तेरे साथ में हूँ।<br />
<br /><br />
दिन ढल चुका है।<br />
शाम हो चुकी है।<br />
पंछी अपने बसेरा की तरफ लौट रहे हैं।<br />
क्षितिज में-<br />
धुन्ध का पहरा हो रहा है।<br />
सामने एक नदी दीख रही है,<br />
उसमें लहरें चल रही है।<br />
जो बहुत उदास है।<br />
मैं बहुत उदास हूँ।<br />
<div style="text-align: left;">
—– @रमेश कुमार सिंह</div>
<a name='more'></a><div style="text-align: left;">
</div>
</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-15031975497042897362015-04-26T11:51:00.000-07:002015-04-26T11:51:22.046-07:00धरती में कंपन (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<u><span style="color: blue;">सहसा,<br />अचानक बढ़ीं धड़कन,<br />हृदय में नहीं,<br />धरती के गर्भ में।<br />मची हलचल,<br />मस्तिष्क में नहीं,<br />भु- पर्पटी में।<br />सो गये सब,<br />मनुष्य सहित,<br />बड़े-बड़े मकान।<br />सो गये सब<br />पशुओं सहित,<br />बड़े-बड़े वृक्ष।<br />मचा कोहराम,<br />जन- जीवन में।<br />हुआ अस्त-व्यस्त <br />लोगों का जीवन।<br />फट गया कहीं-कहीं,<br />धरती का कपड़ा।<br />टूट गया हर -कहीं,<br />कोई धागा नहीं,<br />ढेर सारे मकान।<br />उजड़ गया सब,<br />चिड़िया का घोसला सहित,<br />मानव का आवास।<br />यहाँ आया था,<br />कोई जादूगर नहीं,<br />प्रलय विनाशकारी।<br />मचा गया प्रलय का ताण्डव,<br />यह क्षणभर का विपदा,<br />दे गया आँखों में आँसू।<br />बहुत से लोग चले गये,<br />कहीं मौज मस्ती करने नहीं,<br />अपनी अन्तिम यात्रा पर।<br />दे गये पिड़ा सिर्फ़,<br />अपनों को ही नहीं,<br />पुरे मानवता को----<br />यहीं हुआ धरती में कंपन।<br /><a href="mailto:--------@रमेश">--------@रमेश</a> कुमार सिंह <br />-----------२६-०४-२०१५</span></u></div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-26085276622191191652015-04-09T10:12:00.002-07:002015-04-10T00:44:04.147-07:00निश्छल प्रेम कथा कह रही हो!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
तुमसे जब होता है,<br />
नयनोन्मीलन।<br />
मुझे ऐसा एहसास होता है।<br />
तुम्हारी अधरों के,<br />
मधुर कंगारो ने।<br />
तुम्हारी ध्वनि की,<br />
गुंजारो ने ।<br />
तुम्हारी मधुसरिता सी,<br />
हँसीं तरल।<br />
रजनीगंधा की तरह,<br />
कली खिली हो।<br />
राग अनंत लिये,<br />
अपने अधरों में।<br />
हँसीनी सी सुन्दर,<br />
पलको को उठाये हुअे।<br />
मौन की भाषा में।<br />
विस्फारित नयनो से,<br />
निश्छल प्रेम कथा कह रही हो </div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-64519338061632410842015-04-01T05:13:00.000-07:002015-04-09T10:06:45.514-07:00दु:ख (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
सुबह में मैं बहुत खुश था
<br />
लिये मन में सपने सुंदर था<br />
अपने घर की ओर जा रहा था<br />
खुशियों का लहर मन में था<br />
तभी अचानक वो आया था<br />
दुखों का लिया पहाड़ था।<br />
सबको बाटना चाहता था।<br />
बाटा सबको थोड़ा -थोड़ा<br />
हिस्सा हमें भी दे रहा था <br />
नहीं लेने का कर रहा था<br />
उन लोगों से गुजारिश<br />
तकाजा नियम का दे रहा था।<br />
नियम का दिखावा कर<br />
आलोक नियम का दिखाकर,<br />
कर दिया सबको अन्दर
यही<br />
मेरा दुख भरा समन्दर।
<br />
------०२-०२-२०१५-------<br />
--------रमेश कुमार सिंह ♌</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-37682973485510205792015-03-30T05:10:00.000-07:002015-03-30T05:15:38.726-07:00जाम-पे-जाम (मुक्तक)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
पैग - पे - पैग हम तो चढाते रहे।<br />
जाम-पे-जाम हम तो लगाते रहे।<br />
जैसे जनन्त में हूँ ऐसा हुआ असर,<br />
आनंद,कुछ समय गुदगुदाते रहे।<br />
<br /><br />
पानी को हर पैग में, मिलाते रहे।
<br />
दोनों मिलकर नशामे भीगाते रहे।<br />
बाद में मेरा, मौसम रंगीन हुआ।<br />
कि अपने को ख्वाब में डुबाते रहे।<br />
<br /><br />
••••••रमेश कुमार सिंह ♌ •••
••••••०३---०३---२०१५•••••</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-21528470229050369692015-03-26T02:13:00.001-07:002015-03-30T04:38:07.744-07:00आज भी याद है ---(कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज भी याद है,<br />
उसकी हँसीं,<br />
मुस्कुराहट<br />
अधरों से निकले,<br />
वो लब्ज जब,<br />
हृदयंगम,<br />
होते हैं।<br />
तो मैं खो जाता हूँ <br />
उसकी यादों में,<br />
टटोलने लगता हूँ,<br />
बिताये हुए।<br />
वो सारे पल-<br />
वो स्पर्श,<br />
कभी कभी ,<br />
नाराजगी को दिखाना ,<br />
मुझसे दूर जाकर,<br />
बैठ जाना,<br />
फिर थोड़ी देर बाद,<br />
वापस आना,<br />
अपनी गलती को,<br />
सहर्ष स्वीकार करना।<br />
फिर मुस्कुराते हुए,<br />
शरमाना।<br />
होने लगती है,<br />
सब बातें।<br />
अन्त में हाथ लगती है,<br />
उसके हमारे बीच का<br />
कार्यानुभव,<br />
जिसमें यादों के रास्ते,<br />
करते हैं विचरण!!<br />
----रमेश कुमार सिंह ♌<br />
----०८-०३-२०१५<br />
•</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-49984132702093876952015-03-23T18:57:00.003-07:002015-03-23T19:03:50.041-07:00यादें (कविता)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
हे मन !<br />
क्यों उदास है?<br />
क्या सोच रहा है?<br />
क्यों याद कर रहा है ?उसको<br />
उसका अभी -भी इन्तजार है ,<br />
उसने क्या दिया था तुम्हें,<br />
खुशहाल भरे ओ पल,<br />
आनन्द भरी वो बातें,<br />
इजहार के वो दिन,<br />
क्या यही याद कर रहा है तुम,<br />
वो तो तुम्हारे पास सब <br />
छोड़ कर गई है।<br />
उसका रूप बदलकर गई है।<br />
नाम है जिसका-यादें।<br />
उन यादों के झरोखों में,<br />
झाककर देखोगे जब,<br />
दिखाई देगा वो सब।<br />
साथ-साथ रहने की-<br />
चाहे वो बाग हो।<br />
चाहे वो सफर हो।<br />
चाहे वो मन्दिर हो।<br />
चाहे वो महफ़िल हो।<br />
चाहे वो प्यार हो।<br />
चाहे वो इजहार हो।<br />
सब हैं यादों में कैद।<br />
वो लेकर क्या गई?<br />
सिर्फ व सिर्फ एक नाम-<br />
"बेवफा"!!!!<br />
---------रमेश कुमार सिंह ♌<br />
---------२९-०१-२०१५</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-2939780353184437652015-03-22T05:37:00.000-07:002015-03-22T05:37:45.709-07:00तुम कहाँ हो???<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
मन कि चन्चलता,<br />
देखने को कहता,<br />
तुम्हें ढुढ रही हूँ,<br />
जानते हों क्यों,<br />
आज प्रेम दिवस है।<br />
<br /><br />
हृदय व्याकुलता,<br />
आने को कहता,<br />
राह देख रही हूँ,<br />
जानते हों क्यों?<br />
आज प्रेम दिवस हैं।<br />
<br /><br />
फुलो कि बगिया,<br />
से फुल गुलाबिया,<br />
तोड़ कर लाया हूँ,<br />
जानते हो क्यों?<br />
आज प्रेम दिवस है।<br />
<br /><br />
स्नेह भरे फुलो को,<br />
तुम्हीं को देने को,<br />
लेकर चला आया हूँ,<br />
जानते हो क्यों?<br />
आज प्रेम दिवस है।<br />
<br /><br />
इन लिए पुष्पों को,<br />
अपनी खुली पलको को,<br />
समेट नहीं पाती हूँ,<br />
जानते हो क्यों?<br />
आज प्रेम दिवस है।<br />
<br /><br />
मुँदी पलकों,<br />
बिखरी अलको,<br />
होठों की जुंबिस,
<br />
चुम रही हूँ,<br />
जानते हो क्यों ?<br />
आज प्रेम दिवस है।<br />
<br /><br />
तुम कहाँ हो ?<br />
अनजानी राहों,<br />
अकेली बैठीं हूँ,<br />
जानते हो क्यों ?<br />
आज प्रेम दिवस है। <br />
•••••••••••••••••••••••••••••••।<br />
-------------
रमेश कुमार सिंह --।<br />
---------------१४-०२-२०१५----।<br />
•••••••••••••••••••••••••••••••।</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-30701427965260533412015-03-22T05:06:00.001-07:002015-03-22T05:06:56.294-07:00तुम्हारी याद ---<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
यादें तुम्हारी मेरे पास बहुत है ,<br />
किस पल को याद करूँ मैं।<br />
सभी पलो में हलचल मची है,<br />
किस-किस पर मन दौड़ाऊँ मैं।<br />
<br /><br />
मन चारों दिशाओं मे जाते हैं,<br />
किधर-किधर उसे मोड़ दू मैं ।<br />
सब कुछ बातें समझ नहीं पाते,<br />
कैसे बिताये लम्हे याद करूँ मैं ।<br />
<br /><br />
जब -जब याद तुम्हें करते हैं ,<br />
उस वक्त सोचने लगता हूँ मैं।<br />
खुराफातें सब मन में आ जाते हैं,<br />
कैसे इन सबको हटाऊँ मैं ।<br />
<br /><br />
हर क्षण आती बहुत सी बातें,<br />
कैसे हर क्षण को विताऊँ मैं।<br />
हृदय में मेरे हर पल चुभतें,<br />
जब गुजरें लम्हे याद करता हूँ मैं।<br />
<br /><br />
हृदय तल पर वो पल उमड़ते हैं,<br />
कैसे तुम्हारे दिल को बतलाऊँ मैं।<br />
बातें एक-एक करके बित चुके हैं ,<br />
कैसे तुम्हें आकर समझाऊँ मैं ।<br />
<br /><br />
कल्पित शब्दों से वर्णन कर-करके,<br />
कैसे परिस्थितियों को भुलाऊँ मैं।<br />
समाप्ति के कगार पर लम्हे आपके,<br />
कैसे तुम्हारे दिल के अन्दर आऊँ मैं।<br />
--------रमेश कुमार सिंह ♌</div>
रमेश कुमार सिंह http://www.blogger.com/profile/02890835415973359950noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6104025338619951403.post-36657502315927256942015-03-11T21:45:00.003-07:002015-03-12T07:05:39.869-07:00वो यादें•••• (संस्मरण)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ईशीका——
हमारे और तुम्हारे बीच जितनी भी क्रियाएँ हुई वो सब एक मधुर यादों के जरिये इस पन्नों में आकर सिमट गई।जो यह सफेद पन्ना ही बतलाएगा की हमारे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह थी यह पन्ना इतना ही नहीं बल्कि हमारे तुम्हारे बीच के अपनापन को दर्शायगा,कि हमारे और तुम्हारे बीच कितने मधुर सम्बन्ध थे।जिसे आँखों के जरिए बयां करते थे लेकिन जुबां के जरिए नहीं कर पाते।आँखों के रास्ते धिरे-धिरे कब दिल और जुबां पर आ गये हमें पता ही नही चला।मैं तुम्हारे उतना ही नजदीक हूँ जीतना कल मैं। हमेशा तुम्हारे चेहरे और मुस्कान को ही देखना चाहा क्यों कि तुम्हारे साथ गुजारी वो सुहानी संध्याओ और चांदनी रातों के वे चित्र उभर आते है,जब बहुत समय तक लोगों के बीच मौन भाव से हम एक दूसरे निहारा करते थे बिना स्पर्श किये ही जाने कैसी मादकता तन मन को विभोर किये रहती थी।जाने कैसी तन्मयता में हम डुबे रहते थे •••••एक विचित्र सी स्वप्निल दुनिया में। मैं। कुछ बोलना भी चाहता था तुम्हें। पर जाने क्यों आत्मीयता के ये क्षण अनकहे ही रह जाते ।
हँसना ,खुश रहना चिड़ियों की तरह चहकना ,फुलो की तरह महकना हमारे खुशी का राज था। क्यों कि मेरी साँस जहाँ की तहा रूक जाती थी तुम्हारे आगे के शब्द को सुनने के लिए ,पर शब्द नहीं आते बड़ी कातर ,करूण याचना भरी दृष्टि से मैं। तुम्हें देखना चाहता था तुम मुझे जरूर भुल गई होगी लेकिन मैं तुम्हें आज भी यादों के। झरोखों में संजोये रखा हूँ।क्यों कि मेरे अंदर एक खास बात यह है कि जब किसी को वादा करता हूँ तो निभाना चाहता हूँ ।हो सकता है कि तुमने नादानी किया हो तो क्या मैं भी करूँ,कदापि नहीं। आज भी मैं उसी तरह से देखता हूँ तुम्हारे दिये हुए चित्र को। मुझे ऐसा महसूस होता हैं कि आज भी मेरी आँखों में रंगीनी और मादकता छा जाती है। तुम्हारे आवाज़ को मैं आज भी सुनता हूँ,तो एकाएक मेरे मन में। विचार आता है कि क्या कुछ मैं उस समय किया वह निरा भ्रम था मेरा कल्पना,मेरा अनुमान नहीं। नहीं उस घटनाओं को कैसे भूल सकता जिसके द्वारा उसके हृदय की एक-एक परत मेरे सामने खुल गये थे।वो आत्मीयता के अनकहे क्षण याद करता हूं तो वो सारे पल मेरे सामने एक-एक करके आने लगते है।
याद आता है तुम्हारे हाथ से लिखा वो शायरी आज भी मैं अपने डायरी में संजोये रखा हूँ।उसे कभी -कभी जब पढते है तो हमारी वो भावुकता यथार्थ में बदल जाती है।सपनों के जगह वास्तविकता आ जाते हैं ऐसा महसूस होता है। मैं तो नहीं मानता लेकिन उसमें जो स्पेशल रूप से जिन शायरी को चिन्हित किया गया था वो यही शायरी है जिन्हें आपसे। अवगत कराना चाहता हूँ जो इस प्रकार हैं-------<br />
"ओठों पे एक मुस्कान काफी है,
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दिल मे एक अरमान काफी है।
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कुछ नहीं चाहिए हमें जिन्दगी से,<br />
बस आप हमें ना भुलाना यही एहसान काफी है।
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"अपने दिल में हमारे लिए यही प्यार रखना,<br />
प्यारा सा रिश्ता यु ही बरकरार रखना।
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मालूम है आपकी दुनिया सिर्फ हम नहीं,
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पर औरों के बीच में हमारा भी ख्याल रखना।<br />
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Dosti hai any time"ham nibhate some time"
yad kiya karo any time"Aap khush rahe all
time"
yahi duaa hai meri "life time"<br />
इन शायरी को जब मैं पढ़ा तो मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल पैदा हुई जिसके वजह से तुम्हारे तरफ खींचा चला गया और तुम्हारे बारे में सोचने पर मजबूर भी हो गया।और तुम्हारे साथ सारी बातें साझा करने लगा।
आज भी तुम्हारे कॅाल का उसी प्रकार इन्तजार रहता है जिस प्रकार तुम सुबह-साम खिड़की के रास्ते देखा करती थी इतना ही नहीं हमारे चले जाने पर मेरे आने का राह देखा करती थी।
मैं तुम्हारे अन्दर एक ही कमी पाया था जिसको भरसक प्रयास किया दूर करने का इसलिए कि तुम हमेंशा खुश रहो,वो यही था कि तुम्हारे अन्दर क्रोध का होना । तुम्हारा मेरे उपर इतना ख्याल रखना मेरे बारे में किसी से जिक्र करना और इनतजार करना भोजन साथ करने के लिए और एक दूसरे को प्रेम परिपूर्ण निगाहों से देखना ये सब याद आते है कॅास ओ दिन आज भी आ जाते फिर से हमारी यादें हकीकत हो जाती।
मुझे तो यह भी याद आता है तुम्हारा बार -बार मेरे पास आना तुम्हें जो भी अच्छी चीजें मिले पहले उसे दिखाना ,कभी -कभी आँखों से एक टक देखना फिर शर्म से पलके झुकाना ,इतराना ,रूठना फिर अपनेआप मान जाना,हथेलियों का स्पर्श करना और मुझसे यह बात कहना-------"जब मैं रूठती हूँ। या आप रूठते हैं,तो दोनों तरफ से मुझे ही नुकसान होता है,मुझे ही मनाना पड़ता है।" उस आवाज़ में किस प्रकार का लगाव था जो लगाव इतना हुआ कि चाहकर भी भूल नहीं पा रहा था। ओ भी बातें याद आ रही है कि तुम एक बार। मुझसे आकर पूछी -----"कि मैं किसी को भुलना चाहती हूँ लेकिन मैं भूल नहीं पा रही हूँ कृपा करके कोई उपाय बताइए।" तो मैं हल्का मुस्कान लिए हँसा और उत्तर दिया ----" कोशिश करो कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।"
इतना ही नहीं और बहुत से ऐसे पल हैं जो उस समय प्रति दिन अपने ही बॅाटल में पानी लाकर पिलाना मुझे दिखाकर खिड़की के रास्ते सजना संवरना मैं न रहूँ तो मेरा इन्तजार करना।
वो होली याद आ रही है २०१२ की जब हम घर से वहाँ पहुँचा तो तुम अबीर लेकर आई और बोली -"यह अबीर सिर्फ व सिर्फ आपके लिए रखीं हूँ।" तथा मेरे अनुपस्थिति में होली किसी के साथ नहीं खेलना चेहरा उदास रहना इसका आखिर मतलब क्या था ?
तुम्हारे प्रति मेरे अंदर इतनी नजदीकियां बढ गयी कि मुझे भी पता नही चला।किसी सभा में मुझे ही देखना।अन्त में जाते समय हाथों का स्पर्श लेना चाकलेट अपने हाथों से खिलाना और मेरे पास अपने छोटे भाई के बहाने मुझसे बार-बार मिलने की कोशिश करना और घर पहुँचते ही फोन करना और बातें करना उसके बाद भी किसी रिश्ते खुलासा नहीं करना ये क्या दर्शाता है।
उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि तुम मानो या न मानो यह रिश्ता बहुत ही प्यारा था।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे तुम्हारे और मेरे बीच कोई न कोई मजबूरी थी जिससे हम आपस में नहीं खुल पाये । तुम मुझसे बोलों या न बोलों,याद करों या ना करो वो पल एक सुहाना था वो पल एक सुंदर था प्यार भरा था चाहे भले ही आत्मीयता के वो क्षण अनकहे रह गये हों जो सिर्फ यांदो के इस पन्नों में सिमटकर रह गयी।इसलिए मैं अब भी यही चाहता हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो आबाद रहो ढेर सारी खुशियाँ तुम्हारी चरण हुवे बस यही हमारी कामना है,तुम्हारा अपने जीवन में खुश रहना ही हमारा सच्चा प्यार है ••••
तुम्हारा
रमेश कुमार सिंह ♌</div>
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